काशी में पिंडदान का महत्व

पिंडदान पितरों की आत्मा की शांति और सदगति (मोक्ष) के लिए किया जाने वाला एक श्राद्ध कर्म है। काशी में पिंडदान का महत्व बहुत ही विशेष है। इस श्राद्ध कर्म में चावल या जौ का आटा, काला तिल, घी और जल आदि से पिंड बनाकर पितरों को अर्पित किया जाता है।

काशी में पिंडदान का महत्व

काशी में पिंडदान करने की मान्यता इतनी अधिक इसीलिए है क्योंकि इसे मोक्षदायिनी भूमि कहा गया है।

काशी में पिंडदान का महत्व

काशी में पिंडदान का बहुत ही गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। काशी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यहाँ पिंडदान करने पर स्वयं भगवान शिव का आशीर्वाद मिलता है। साथ ही यहाँ किया गया पिंडदान पितरों के साथ साथ पिंडदान करने वाले के लिए भी कल्याणकारी होता है।

काशी मोक्षदायिनी नगरी है काशी में पिंडदान का कर्म पितृ ऋण से मुक्ति दिलाने में सहायक होता है।

काशी में पितृपक्ष में पिंडदान का आयोजन बड़े स्तर पर होता है। इसके अलावा अमावस्या, महाशिवरात्रि, श्रावण मास, विशेष रूप से श्रावण मास की अमावस्या पर भी पिंडदान किया जाता है।

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पिंडदान का उद्देशय यह है कि आप अपने पितरों को स्वर्गलोक में जाने के लिए रास्ते में उनके भोजन की व्यवस्था कर रहे हैं। जो पिंड आप गंगा जी में डालते हैं वह उनको भोजन के रूप में प्राप्त होता है। उन्हें अपनी आगे की यात्रा पूरी करने के लिए ऊर्जा मिलती है।

आमतौर पर लोगों यह मानते हैं कि एक बार पिंडदान का कर्म करने के बाद दुबारा फिर कभी पिंडदान करने की आवश्यकता नहीं होती लेकिन ऐसा नहीं है। यह सोचना गलत है।

जब तक आप जीवित हैं और शारीरिक रूप से पिंडदान कर्म करने में सक्षम हैं। तब तक आपको अपने पितरों का पिंडदान करते रहना चाहिए और आपके बाद आपके पुत्रों को इस परम्परा का निर्वहन करना चाहिए।

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काशी में पिंडदान कहां होता है

काशी (वाराणसी) में इसके लिए कुछ मुख्य पवित्र घाट हैं इन्हीं स्थानों पर पिंड दान किया जाता है। काशी पिंड दान के लिए मुख्य घाट दशाश्वमेध घाट, पिशाचमोचन कुंड, मणिकर्णिका घाट और अस्सी घाट हैं।

पिंडदान के लिए किसी योग्य पुरोहित (पंडित) की सहायता लेनी चाहिए जो विधिपूर्वक कर्म कराए। कुछ लोग मंदिरों के पास बने खास पिंडदान केंद्रों पर भी जाकर वहां ब्राह्मणों से पिंडदान कराते हैं।

(Disclaimer: The material on hindumystery.com website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)



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