परशुराम द्वादशी 2025

परशुराम द्वादशी 2025: इस वर्ष परशुराम द्वादशी की तिथि 8 मई 2025 है। हिंदू धर्म में परशुराम द्वादशी का विशेष महत्व है। यह पर्व वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है।

इस दिन भगवान विष्णु के छठे अवतार भगवान परशुराम की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन को धर्म और न्याय की स्थापना के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

परशुराम द्वादशी 2025

परशुराम द्वादशी 2025

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को ही भगवान परशुराम को भगवान शिव से उनका फरसा (परशु) प्राप्त हुआ था। इसी परशु से उन्होंने पृथ्वी पर बढ़ते अधर्म और अत्याचारी राजाओं का संहार किया।

एक अन्य मान्यता के अनुसार, इसी दिन भगवान विष्णु ने धरती पर अधर्म को समाप्त करने के लिए परशुराम रूप में अवतार लिया था, हालांकि परशुराम जयंती अक्षय तृतीया (वैशाख शुक्ल तृतीया) को मनाई जाती है। किन्तु परशुराम द्वादशी का पर्व मुख्य रूप से भगवान परशुराम को परशु मिलने और उनके पराक्रम से जुड़ी है।

इसे भी पढ़ें: माथे पर तिलक लगाने का वैज्ञानिक रहस्य

परशुराम द्वादशी महत्व

परशुराम द्वादशी का व्रत और पूजन अत्यंत फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इस दिन विधि-विधान से पूजा करने और व्रत रखने से भगवान परशुराम प्रसन्न होते हैं और भक्तों की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

विशेष रूप से जिन दंपत्तियों को संतान प्राप्ति की इच्छा होती है, उनके लिए यह व्रत बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार, इस दिन व्रत और पूजन करने से उत्तम संतान की प्राप्ति होती है।

संतान प्राप्ति हेतु विशेष

संतान प्राप्ति की कामना रखने वाले दंपत्तियों को परशुराम द्वादशी के दिन विशेष रूप से व्रत रखकर भगवान परशुराम की पूजा करनी चाहिए।

मान्यता है कि सच्चे मन और पूरे श्रद्धा भाव से की गई प्रार्थना और पूजा से भगवान परशुराम की कृपा प्राप्त होती है और संतान सुख की प्राप्ति होती है।

Join WhatsApp Channel Join Our WhatsApp Channel

पूजा विधि

परशुराम द्वादशी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें।

एक लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर भगवान विष्णु या भगवान परशुराम की मूर्ति अथवा चित्र स्थापित करें। गंगाजल या शुद्ध जल से अभिषेक करें।

भगवान् के समक्ष धूप दीप जलाने के बाद उन्हें पुष्प अर्पित करें। भगवान् परशुराम को नैवेद्य अर्पित करने के बाद पूजन करें। भगवान परशुराम के मंत्रों का जाप करें।

"ॐ जमदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि तन्नो राम: प्रचोदयात्।" 

"ॐ रां रां ॐ रां रां परशुहस्ताय नमः"

व्रत कथा का पाठ करें और अंत में आरती करें। यदि संभव हो तो दिन भर निराहार या फलाहार रहकर व्रत का पालन करें। संध्याकाल में भी पूजा और आरती की जा सकती है। यदि अपने व्रत रखा है तो व्रत का पारण अगले दिन किया जाता है

(Disclaimer: The material on hindumystery website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

Leave a Comment

WhatsApp Channel Join Now
error: Content is protected !!