शबरी के जूठे बेर खाए भजन | बड़ा ही मीठा लागे रे माई तेरे हाथों का बेर

शबरी के जूठे बेर खाए भजन – राम-शबरी कथा भक्ति, श्रद्धा और ईश्वर की करुणा का अत्यंत मार्मिक प्रसंग है, जो हमें यह सिखाती है कि भगवान केवल भक्ति को स्वीकार करते हैं, न कि जाति, रूप या सामाजिक स्थिति को देखते हैं।

शबरी के जूठे बेर खाए भजन

शबरी के जूठे बेर खाए भजन

बड़ा ही मीठा लागे रे माई तेरे हाथों का बेर

बड़ा ही मीठा लागे रे माई तेरे हाथों का बेर ।


मात हाथ दूध भात कंचन कटोरी खात
प्रेम से कौशल्या मात भोजन बनाती हैं,
चंवर डुलाय रही फूली न समाय रही
मात मझली तो निज हाथ से खिलती हैं,
छोटी मात मुस्कात भूमि पे गिरा जो भात
प्रेम से उठाय वो प्रसाद जैसे पाती हैं,
जूठन जो बच जात राजा दशरथ खात
खड़ी खड़ी देख तीनों मात ललचाती हैं।


निज हाथों से आप पवा दो यही लगाऊं टेर,
बड़ा ही मीठा लागे रे माई तेरे हाथों का बेर।


पहुंचे जनक द्वार खूब हुआ सत्कार
भवन के भीतर बुलाया बड़े प्रेम से,
आसान लगाया गया पुष्प से सजाया गया
अनुज के साथ बिठलाया बड़े प्रेम से,
देवता मनुज बन व्यंजन बनाय रहे
कंचन का थाल भी सजाया गया प्रेम,
मेरे सामने ही मेरे गुणगान गाय रहे
और फिर भोजन कराया बड़े प्रेम से ।


इसके आगे त्याग दूं अमृत नहीं लगाऊं देर ,
बड़ा ही मीठा लागे रे माई तेरे हाथों का बेर।


जनक दुलारी सिया लक्ष्मी का अवतार
उनके गुणों का क्या बखान कहूँ आपसे ,
अन्नपूर्णा का हाथ जिनके सदैव साथ
उनके रसोई का क्या ज्ञान कहूँ आपसे ,
जिस जानकी ने कंदमूल भी परोसा गर
सच लगे जैसे पकवान कहूँ आपसे ,
वो भी स्वाद आज इस बेर ने भुलाय दियो ,
सत्य सत्य मात मै बयान कहूँ आपसे ।


जिन हाथों में इतना सुख है मेरे सिर दो फेर,
बड़ा ही मीठा लागे रे माई तेरे हाथों का बेर।।


गीतकार रोहित मिश्र

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