त्रिशूर पूरम महोत्सव

भारत “उत्सवों की भूमि” है क्योंकि यहाँ हर धर्म, क्षेत्र, मौसम और संस्कृति के अनुसार उत्सव मनाए जाते हैं। इसी तरह एक उत्सव है जिसे त्रिशूर पूरम महोत्सव कहते हैं। आज हम आपको इस उत्सव का महत्व, इतिहास और मनाने का तरीका बताएँगे।

त्रिशूर पूरम महोत्सव

भारत में मनाये जाने वाले प्रत्येक उत्सव का अपना विशेष महत्व, इतिहास और मनाने का तरीका है। ये उत्सव देश की समृद्ध संस्कृति, परंपराओं और धार्मिक सद्भाव के प्रतीक हैं।

त्रिशूर पूरम महोत्सव

त्रिशूर पूरम महोत्सव केरल का एक बहुत ही भव्य और प्रसिद्ध वार्षिक मंदिर उत्सव है। यह उत्सव केरल के त्रिशूर शहर के थेक्किंकाडु मैदानम में स्थित वडक्कुनाथन मंदिर में आयोजित किया जाता है, जहाँ भगवान शिव की पूजा की जाती है।

त्रिशूर पूरम मलयालम कैलेंडर के अनुसार ‘मेदम ‘ (अप्रैल-मई) महीने में उस दिन मनाया जाता है जब चंद्रमा पूरम तारे के साथ उदय होता है। यह उत्सव कई दिनों तक चलता है, जिसमें मुख्य पूरम छठे दिन होता है।

यह उत्सव केरल की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है।

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त्रिशूर पूरम उत्सव का इतिहास

त्रिशूर पूरम की शुरुआत 18वीं शताब्दी के अंत में कोचीन के महाराजा सक्थन थंपुरन ने की थी। उस समय, अरट्टुपुझा पूरम केरल का प्रमुख मंदिर उत्सव था। एक वर्ष, त्रिशूर के कुछ मंदिरों के समूह बारिश के कारण समय पर नहीं पहुँच पाए।

इस वजह से उन्हें पूरम जुलूस तक पहुंच से वंचित कर दिया गया। इनकार से शर्मिंदा और क्रोधित महसूस करते हुए, प्रतिबंधित मंदिर समूहों ने सक्थन थंपुरन से शिकायत की। 

सक्थन थंपुरन ने त्रिशूर पूरम को एक नए सामूहिक उत्सव के रूप में शुरू किया जिसमें आसपास के मंदिरों को आमंत्रित किया गया और वडक्कुनाथन मंदिर में एकत्रित होकर भगवान शिव को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। तभी से त्रिशूर पूरम उत्सव मनाया जाने लगा।

इस उत्स्व में एक अनोखी परंपरा यह है कि इस उत्स्व में इस्तेमाल होने वाली हर चीज को हर साल नए सिरे से बनाया जाता है। ऐसे लोग है जिन्हें हर वर्ष छतरियां और नेट्टीपट्टम बनाने का कार्य दिया जाता है। 

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मुख्य आयोजन

त्रिशूर पूरम महोत्सव के कुछ आयोजन प्रमुख आकर्षण का केंद्र हैं।

विलंबरम : त्रिशूर पूरम उत्सव की शुरुआत एक सजावटी हाथी द्वारा वडक्कुनाथन मंदिर के दक्षिणी द्वार को खोलने से होती है। द्वार खुलने के साथ ही भक्तों उत्साह की एक नई लहर दौड़ जाती है।

हाथियों की शोभायात्रा: सजावटी हाथियों की भव्य परेड, जिन पर देवी-देवताओं की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं, इस उत्सव का प्रमुख आकर्षण होती हैं।

इलंजीथारा मेलम : यह पारंपरिक वाद्ययंत्रों जैसे चेंडा, इलाथलम, कोम्बु और कुरुंका के साथ एक भव्य संगीत प्रस्तुति है। यह संगीत श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देता है।

कुदमाट्टम : इस आयोजन में रंग-बिरंगे सजावटी छतरियों की अदला-बदली करी जाती है, जो परमेक्कावु और थिरुवाम्बाडी मंदिर समूहों के बीच होता है।

विस्फोटक आतिशबाज़ी : रात भर चलने वाली आतिशबाज़ी भी इस उत्सव का एक प्रमुख आकर्षण है। इसे “सैंपल वेदिकट्टू” कहा जाता है,

त्रिशूर पूरम न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह केरल की सांस्कृतिक विविधता और एकता का प्रतीक भी है। इस उत्सव में विभिन्न समुदायों के लोग भाग लेते हैं, जिससे यह सामाजिक समरसता का उदाहरण बनता है। इसके अलावा, यह उत्सव केरल के पर्यटन मानचित्र में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है, जो देश-विदेश से पर्यटकों को आकर्षित करता है।

(Disclaimer: The material on hindumystery.com website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.

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