हिन्दू शास्त्रों के अनुसार पति के कर्तव्य बताए गए हैं। ये कर्तव्य न केवल परिवार के भरण-पोषण से संबंधित हैं, बल्कि पत्नी के प्रति सम्मान, सुरक्षा और धार्मिक जिम्मेदारियों से भी जुड़े हैं। हिन्दू धर्म में विवाह को एक संस्कार बताया गया है, और इसमें पति-पत्नी दोनों के कुछ विशेष कर्तव्य निर्धारित किए गए हैं।

शास्त्रों के अनुसार पति के कर्तव्य
शास्त्रों के अनुसार पति के कर्तव्य हैं अपनी पत्नी की रक्षा करने और उसे सम्मान देने के साथ ही उसके पालन-पोषण का उत्तरदायित्व निभाना। साथ ही पत्नी के साथ धर्म, अर्थ और काम का पालन करना, पत्नी की भावनाओं और इच्छाओं का आदर करना और पत्नीव्रत धर्म का पालन करते हुए संतानोत्पत्ति और पालन में सहभागी होना भी पत्नी के लिए पति के कर्तव्य बताये गए हैं।
नीचे पति के कर्तव्यों को विस्तारपूर्वक बताया गया है:
पत्नी की रक्षा करना
शास्त्रों के अनुसार पति के कर्तव्य हैं अपनी पत्नी की हर प्रकार से रक्षा करना है – शारीरिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से। शास्त्रों के अनुसार पति को बाहरी खतरों और सामाजिक बुराइयों से अपनी पत्नी को सुरक्षित रखना चाहिए। शास्त्रों में इसे पति का सबसे पहला कर्तव्य बताया गया है।
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पत्नी को सम्मान देना
शास्त्रों में पत्नी को ‘अर्धांगिनी’ (आधा अंग) कहा गया है। पत्नी को ग्रहलक्ष्मी बताया गया है, इसीलिए पति को अपनी पत्नी का सम्मान अवश्य करना चाहिए और उसके साथ प्रेम और स्नेह का व्यवहार करना चाहिए।
महत्वपूर्ण पारिवारिक निर्णयों में उसकी सलाह लेनी चाहिए। मनुस्मृति में कहा गया है, “यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः” अर्थात जहाँ स्त्रियों का सम्मान होता है, वहाँ देवता निवास करते हैं। पत्नी को नीचा दिखाना या उसका तिरस्कार करना अधर्म माना गया है।
पत्नी का पालन-पोषण करना
पति का यह दायित्व है कि वह अपनी पत्नी की सभी बुनियादी ज़रूरतों जैसे भोजन, वस्त्र, आवास और अन्य आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति करे। पत्नी का भरण-पोषण करना पति का उत्तरदायित्व है।
धार्मिक कर्तव्यों का पालन
पत्नी को ‘सहधर्मिणी’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है धर्म के कार्यों में समान भागीदार। पति को सभी धार्मिक अनुष्ठान और यज्ञ आदि पत्नी के साथ मिलकर करने चाहिए। पत्नी के बिना किए गए कई धार्मिक कार्य अधूरे माने जाते हैं।
शास्त्रों के अनुसार पति के कर्तव्य हैं पत्नी के साथ मिलकर जीवन के चार पुरुषार्थों धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष में संतुलन बनाए रखना।
पत्नी की भावनाओं और इच्छाओं का आदर करना
शास्त्रों के अनुसार पत्नी की इच्छाओं, भावनाओं, और सोच का ध्यान रखना और उसके आत्मसम्मान की रक्षा करना भी पति का कर्तव्य है।
पत्नीव्रत धर्म का पालन करना
पति को एकनिष्ठ रहना चाहिए और केवल अपनी पत्नी के प्रति समर्पित रहना चाहिए। पति को अपनी पत्नी के प्रति पूर्ण रूप से वफादार रहना चाहिए और पत्नीव्रत धर्म का पालन करना चाहिए।
संतुष्टि
पति का कर्तव्य है कि वह अपनी पत्नी को भावनात्मक और शारीरिक रूप से संतुष्ट रखे, उसकी इच्छाओं का ध्यान रखे और उसे प्रसन्न रखने का प्रयास करे।
संतानोत्पत्ति और पालन में सहभागी होना
संतान उत्पन्न करने के साथ ही उसके पालन में सहभागी होना और पत्नी के साथ मिलकर संतान को अच्छे संस्कार देने में सहयोग करना भी पति का कर्तव्य है।
हिन्दू शास्त्रों में पति-पत्नी के संबंध को केवल एक सामाजिक बंधन नहीं, बल्कि एक धार्मिक और आध्यात्मिक बंधन भी माना गया है। इस संबंध को धर्म, कर्तव्य, प्रेम, समर्पण और परस्पर सहयोग का आधार बताया गया है।
पति-पत्नी का साथ होना केवल शारीरिक या सांसारिक बंधन नहीं, बल्कि आत्मिक साझेदारी है। पति-पत्नी मिलकर गृहस्थ आश्रम को निभाते हैं। यही आश्रम संतान, समाज और धर्म की नींव है।
जिस प्रकार शास्त्रों के अनुसार पति के कर्तव्य बताये गए है उसी प्रकार शास्त्रों में पत्नी के कर्तव्य भी निर्धारित किए गए हैं, और एक सुखी गृहस्थ जीवन दोनों के आपसी कर्तव्यों के निर्वहन पर निर्भर करता है।
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