दत्तात्रेय जयंती की कहानी

Dattatreya Jayanti 2025: दत्तात्रेय जयंती हिंदू धर्म में भगवान दत्तात्रेय के जन्मदिन के रूप में मनाई जाने वाला एक त्योहार है। दत्तात्रेय जयंती की कहानी हमे बताती है कि भगवान दत्तात्रेय क विष्णु, ब्रह्मा और शिव के अंश हैं। दत्तात्रेय जयंती हर साल मार्गशीर्ष माह यानि अगहन महीने की पूर्णिमा को मनाई जाती है। सनातन धर्म में मान्यता यह है कि दत्तात्रेय की पूजा करने ब्रह्मा,विष्णु, महेश तीनों देवों का आशीर्वाद मिलता है।

दत्तात्रेय जयंती की कहानी

ajit eknaath saurce licence

दत्तात्रेय जयंती की कहानी

पौराणिक कथाओं के अनुसार एक समय की बात है :

नारद जी माँ पार्वती, माँ लक्ष्मी और माँ सरस्वती के सामने महर्षि अत्रि मुनि के सामने उनकी धर्मपत्नी अनुसूया के पतिव्रता धर्म की तारीफ़ करने लगे। यह सुनने के बाद तीनों माताओं ने अनसूया जी के पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने की सोची।

तीनों माताएं अपने-अपने पतियों से से अनुसूया के पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने के लिए कहने लगीं। अंत में त्रिदेव अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए सहमत हो गए।

इसे भी पढ़ें :

ब्रह्मा, विष्णु और महेश अनुसूया की परीक्षा लेने के लिए एक साधु का वेश बनाकर महर्षि अत्रि के आश्रम पहुंचे। उस समय महर्षि अत्रि आश्रम में नहीं थे।

भिक्षुक के वेश में आये त्रिदेवों ने अनुसूया से भिक्षा मांगी। देवी अनुसूया जब उनके लिए भिक्षा लेकर आयीं तो उनहोंने भिक्षा लेने से इंकार कर दिया।

भिक्षुक बने त्रिदेवों ने देवी अनुसूया के सामने भोजन करने की इच्छा व्यक्त करी। देवी अनुसूया उन्हें भोजन कराने के लिया सहमत हो गयीं।

किन्तु तीनों देव माता अनुसूया को निर्वस्त्र होकर भोजन परोसने की बात कहने लगे। उनका यह कथन सुनकर देवी अनुसूया अत्यंत क्रोधित हो गयीं।

देवी अनुसूया ने अपनी दिव्य दृष्टि का इस्तेमाल करके आश्रम में भिक्षुओं की जांच करी तब उन्हें पता चला की ये तीनों भिक्षु वास्तव में त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश हैं और ये मेरे पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने के लिए यहाँ आये हैं।

देवी अनुसूया ने अपने तपोबल से तीनो देवों को 6 माह का शिशु बनाकर अपने साथ रख लिया और उनका पालन पोषण करने लगीं। दूसरी तरफ तीनों देवियां पति वियोग में परेशान हो गयीं।

जब नारद जी उनके पास पहुंचे तो उन्होंने तीनों देवियों को त्रिदेवों के बालक बनाये जाने का सारा वृत्तांत कह सुनाया।

ये सब जानने के बाद तीनों देवियां अनुसूया के पास पहुंची और उनसे क्षमा मांगने लगीं कि हमने व्यर्थ ही आपके पतिव्रता धर्म के ऊपर संदेह किया। उनहोंने त्रिदेवों को वापिस लौटने के लिए कहा।

पहले तो अनुसूया जी ने त्रिदेवों को वापिस लौटने से मना कर दिया किन्तु तीनों देवियिन के बार-बार कहने पर वे मान गयीं। देवी अनुसूया ने त्रिदेवों को उनका स्वरुप वापिस लौटा दिया।

भगवान ब्रह्मा ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि उन्हें एक पुत्र होगा जो ब्रह्मा, विष्णु और शिव के सभी गुणों से परिपूर्ण होगा।

कुछ समय बीत जाने के बाद देवी अनुसूया की कोख से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। जन्म के समय इनका नाम दत्त रखा गया था। महर्षि अत्रि का पुत्र होने के कारण इन्हें आत्रेय भी कहा गया।

इसी प्रकार समय बीतने के साथ इनका नाम दत्त और आत्रेय मिकार दत्तात्रेय हो गया। दत्तात्रेय बचपन से ही बहुत बुद्धिमान थे। उन्होंने वेद, उपनिषद, दर्शन और अन्य सभी ज्ञानशाखाओं का अध्ययन किया।

दत्तात्रेय ने अपने जीवन में कई चमत्कार किए। वे ज्ञान, कर्म और भक्ति के प्रतीक हैं। उन्होंने लोगों को ज्ञान, कर्म और भक्ति का मार्ग दिखाया। वे एक महान गुरु और संत थे।

दत्तात्रेय जयंती हर साल मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। इस दिन, भगवान दत्तात्रेय की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है।

(Disclaimer: The material on this website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

Leave a Comment

WhatsApp Channel Join Now
error: Content is protected !!