
भगवान् बुद्ध ने ही बौद्ध धर्म की शुरुआत की थी और आज बौद्ध धर्म के अनुयायी पूरी दुनिया में हैं। उनसे से जुड़ा एक प्रश्न क्या भगवान बुद्ध हिन्दू थे ? हमेशा से ही चर्चा विषय रहा है। आज हम इस लेख में पाठकों की इस उलझन को दूर करेंगे।
क्या भगवान् बुद्ध हिन्दू थे
हाँ। भगवान् बुद्ध हिन्दू थे। अशोक के रुम्मिनदेई स्तंभलेख से पता चलता है की bhagwaan Gautam Buddh का जन्म स्थान वर्तमान नेपाल के अंतर्गत भारत की सीमा से 7 सात किलोमीटर दूर है। शाक्य वंश के राजा शुद्धोदन बुद्ध के पिता और मायादेवी उनकी माता हैं। राजा शुद्धोदन हिन्दू धर्म के क्षत्रिय वर्ण से सम्बन्ध रखते थे। इन सभी तथ्यों से यह साबित होता है की भगवान् बुद्ध हिन्दू ही थे।
शाक्य वंश का क्षेत्र हिमालय पर्वत की तलहटी में था। जो कि हिमालय से लेकर पहाड़ों के वनक्षेत्रों तक फैला हुआ था। शाक्यों की राजधानी कपिलवस्तु नगरी थी।
बुद्ध का गोत्र गौतम था। बुद्ध का वास्तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था। भगवान् बुद्ध को शाक्यमुनि के नाम से भी जाना जाता है।
क्या बुद्ध ईश्वर को मानते थे
बुद्ध आस्तिक थे या नास्तिक। यह शुरू से ही एक चर्चा के विषय रहा है। महात्मा बुद्ध के अनुयायी उन्हें ईश्वर में विश्वास न रखने वाला नास्तिक मानते हैं। वहीँ समाज का दूसरा वर्ग उन्हें आस्तिक मानता है। इन्हीं मतभेदों के कारण बहुत से लोगों के मन यह प्रश्न उठते रहते हैं जैसे – क्या बुद्ध ईश्वर को मानते थे ? क्या बुद्ध नास्तिक थे ? चलिए इसका जवाब देते हैं।
हाँ। महात्मा बुद्ध ईश्वर को मानते थे। महात्मा बुद्ध आस्तिक थे और महात्मा बुद्ध नास्तिक नहीं थे। इसका प्रमाण हमें मिलता है धम्मपद में, जो कि बौद्ध साहित्य का सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय ग्रन्थ है। इसमें महात्मा बुद्ध ने अपने उपदेशों में परमात्मा की और स्पष्ट संकेत किया है।
धम्मपद के जरावग्गो 8-9 में बुद्ध ने कहा है।
अनेक जाति संसारं, सन्धाविस्सं अनिन्विस। गृहकारकं गवेस्संतो दुक्खा जाति पुनप्पुनं।।
अर्थात – ग्रह का निर्माण करने वाले ( ईश्वर ) की खोज में मैं अनेक जन्मों तक संसार में भटकता रहा। बार-बार का जन्म दुखमय हुआ।
गह कारक दिट्ठोऽसि पुन गेहं न काहसि। सब्वा ते फासुका भग्गा गहकूटं विसंखितं। विसंखारगतं चित्तं तण्हर्निं खयमज्झागा।।
अर्थात – हे ग्रह कारक ( शरीर बनानेवाले ) ! मैंने तुझे देख लिया, अब तू फिर से घर नहीं बना सकेगा। तेरी सभी कड़ियाँ टूट गयी, ग्रह का शिखर गिर गया। चित्त संस्कार रहित हो गया, तृष्णाओं का क्षय हो गया।
इस श्लोक में मुक्ति अथवा मोक्ष की अवस्था का वर्णन किया गया है। हम जब तक मोक्ष की अवस्था में नहीं पहुँच जाते तब तक जन्म मरण का चक्र चलता रहता है। इससे हमें पता चलता है कि बुद्ध परलोक और पुनर्जन्म में विश्वास करते थे और यह संकेत मिलता है कि बुद्ध आस्तिक थे।
सारनाथ में अपने पहले उपदेश में महात्मा बुद्ध ने कहा था।
अहं भिक्खवे! तथागत सम्मासम्बुद्धो उदूहथ भिक्खवे। सोतं अमतं अधिगतम् अहमनुसासामि अहं धर्म्म देसेमि।
अर्थात – हे भिक्षुओं। अब मैं बुद्ध हो गया हूँ। मैंने अमृत की प्राप्ति कर ली है अब मैं धर्म का उपदेश करता हूँ।
अमृत शब्द वेदों और उपनिषदों में ईश्वर के लिए प्रयोग किया गया है। इससे भी हमें यह संकेत मिलता है कि बुद्ध आस्तिक थे ईश्वर को मानते थे।
हालांकि महात्मा बुद्ध के कुछ अनुयायी ऐसे भी है जो उन्हें ईश्वर में विश्वास न रखने वाला नास्तिक मानते है। और इस विषय पर अभी चर्चाएं जारी हैं।
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बुद्ध किस भगवान् को मानते थे
बुद्ध आस्तिक तो थे और ईश्वर सत्ता को भी मानते थे। किन्तु बुद्ध के लिए सभी धर्मों के भगवान् समान थे। इसी वजह से महात्मा बुद्ध किसी भी एक भगवान् को नहीं मानते थे।
इस बात से जुड़ी एक प्रचलित दन्त कथा भी है। इसके अनुसार स्पीतुक मठ जो कि लेह हवाई-अड्डे से कुछ ही दूरी पर है। यह बौद्ध अनुयायियों के लिए महत्वपूर्ण मठ है। इस मठ का निर्माण 11वीं शताब्दी में करवाया गया था। इस मठ के ऊपरी भाग में देवी तारा का मंदिर है। दन्त कथा के अनुसार बुद्ध देवी तारा की आराधना करते थे।
गौतम बुद्ध ने घर क्यों छोड़ा था
बुद्ध का जन्म एक राजकुमार के रूप में शाक्य वंश के राजा शुद्धोदन के यहाँ हुआ। उनका नाम सिद्दार्थ रखा गया। सिद्दार्थ बचपन से ही स्वाभाव से शांत और करुणामय थे। समय बीतने के साथ उनकी शिक्षा दीक्षा हुई और यशोधरा से उनका विवाह हो गया और उनके घर एक पुत्र का जन्म हुआ।
गौतम बुद्ध ने घर इसीलिए छोड़ा क्यूंकि शाक्य संघ ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध का प्रस्ताव पास किया। गौतम बुद्ध ने इसका विरोध किया। नियम के अनुसार बहुमत के विरुद्ध जाने पर दण्ड के रूप में गौतम बुद्ध की घर छोड़ना पड़ा।
शाक्यों और कोलियों के बीच रोहिणी नदी के जल को लेकर अक्सर संघर्ष होता रहता था। इन्हीं कारणों की वजह से शाक्यों के संघ ने कोलियों के विरुद्ध युद्ध प्रस्ताव पारित किया। किन्तु सिद्दार्थ ( गौतम बुद्ध ) ने इसका विरोध किया। शाक्यों का संघ एक गणतंत्र था। गणतंत्र के नियम के अनुसार बहुमत के विरुद्ध जाने पर दण्ड का प्रावधान था। दण्ड के रूप में गौतम बुद्ध के समक्ष 3 विकल्प रखे गए।
- सिद्दार्थ ( गौतम बुद्ध ) को या तो युद्ध में भाग लेना पड़ेगा।
- मृत्यु दण्ड या फिर देश छोड़कर जाना इन दोनों में से एक दण्ड को स्वीकार करना होगा।
- तीसरा विकल्प था अपने परिवार के लोगों का सामाजिक बहिष्कार और उनकी संपत्ति की जब्ती।
गौतम बुद्ध के लिए युद्ध में भाग लेना एक असंभव कार्य था। अपने परिवार का सामाजिक बहिष्कार भी उनहोंने स्वीकार नहीं किया। आखिर में गौतम बुद्ध ने देश छोड़कर जाना स्वीकार किया। उनहोंने अपने माता पिता और पत्नी यशोधरा की सहमति और अनुमति लेकर घर छोड़ दिया।
ये तथ्य संविधान निर्माता डॉ भीमराव अंबेडकर द्वारा रचित पुस्तक बुद्ध और उनका धम्म से लिए गए हैं।
गौतम बुद्ध किसका ध्यान करते थे
महात्मा बुद्ध ने समाज को ध्यान का महत्व बताया। उनहोंने ध्यान का महत्व बताते हुए कहा था कि ध्यान साधना से संसार के लोग मुक्ति भी प्राप्त कर सकते हैं।
गौतम बुद्ध विपश्यना नाम की एक प्राचीन विधि का ध्यान किया करते थे। विपश्यना एक अत्यंत प्राचीन ध्यान विधि है। इसका अर्थ होता है देखकर लौटना। इसे आत्मनिरीक्षण द्वारा आत्मशुध्दि की सबसे बेहतरीन पद्धिति माना गया है। गौतम बुद्ध ने इसी विधि से ध्यान करते हुए बुद्धत्व हासिल किया और वे भगवान् बुद्ध कहलाये।
गौतम बुद्ध ने विपश्यना ध्यान विधि को सरल रूप में लोगों के सामने रखा। उनहोंने अपने अनुयायियों को भी इसी विधि से ध्यान करवाया और स्वयं को जानने में उनकी मदद की।
बुद्ध धर्म की शुरुआत कैसे हुई
बुद्ध धर्म की शुरुआत ईसा पूर्व छठवीं शताब्दी में महात्मा बुद्ध से हुई।
महात्मा बुद्ध को बिहार के बोधगया में एक पीपल के वृक्ष के नीचे ज्ञान बोध की प्राप्ति हुई इसी वृक्ष को अब बोधि वृक्ष के नाम से जाना जाता है। ज्ञान प्राप्ति के बाद महात्मा बुद्ध ने सारनाथ में अपना प्रथम उपदेश दिया। यहीं से उनके अनुयायी बढ़ने का जो सिलसिला शुरू हुआ वो आज तक अनवरत जारी है। बौद्ध धर्म गौतम बुद्ध की शिक्षाओं और जीवन के अनुभवों पर आधारित है।
महात्मा बुद्ध ने इस दुनिया को पंचशील की शिक्षा दी। उनहोंने समाज के लोगों को जीवन के चार सत्य बताये। यही चार आर्य सत्य हैं जो बौद्ध धर्म का सार हैं। जीवन के ये चार सत्य इस प्रकार हैं।
- दुःख अर्थात संसार दुखमय है।
- दुःख समुदय अर्थात दुःख है तो उसका कारण भी है।
- दुःख निरोध अर्थात दुखों का अंत भी संभव है।
- दुःख निरोध मार्ग अर्थात दुखों के अंत का एक मार्ग भी है।
गौतम बुद्ध की मृत्यु कब और कैसे हुई
गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ईसा पूर्व में कुशीनगर में हुई थी। गौतम बुद्ध की मृत्यु का स्थान उत्तरप्रदेश के देवरिया जिले से 28 किलोमीटर दूर स्थित है। गौतम बुद्ध की मृत्यु 80 वर्ष की आयु में हुई थी।
बौद्ध ग्रंथ ‘महापरिनिर्वाण सूक्त’ के अनुसार महात्मा बुद्ध अपनी यात्रा के दौरान चुंद कम्मारपुत्र नामक एक लोहार के आमों के बाग़ में ठहरे। लोहार ने उन्हें खाने के लिए रोटी, मीठे चावल और मद्दव दिया। यह मद्दव खाते ही वे बीमार हो गए थे और उनकी मृत्यु हो गयी।
लोहार ने जब उन्हें रोटी, मीठे चावल और मद्दव दिया तो महात्मा बुद्ध ने रोटी और मीठे चावल तो अन्य सभी में बंटवा दिए थे किन्तु उनहोंने मद्दव किसी को भी नहीं दिया क्यूंकि वे तभी समझ गए थे कि कोई अन्य इसे नहीं पचा पायेगा। उन्हींने स्वयं भी थोड़ा सा मद्दव खाने के बाद बाकि बचा सारा मद्दव जमीन में गढ़वा दिया। इसके बाद ही वे बीमार हो गए थे और अंततः उनकी मृत्यु हो गयी।
बौद्ध अनुयायी उनकी मृत्यु को मृत्यु होने की साधारण घटना नहीं मानते। क्यूंकि महात्मा बुद्ध अपने शाश्वत स्वरुप को जान गए थे उसके बाद ही इस संसार से विदा हुए। इसीलिए उनकी मृत्यु को केवल मृत्यु न मानकर महापरिनिर्वाण कहा गया है। परिनिर्वाण शब्द का अर्थ होता है मृत्यु के बाद मुक्ति अथवा मोक्ष। इस प्रकार महात्मा बुद्ध ने मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्त किया।
तो साथियों उम्मीद करते है यहाँ दी गयी जानकारी से आपको महात्मा बुद्ध के बारे में बहुत सी बातें पता चलीं होंगी। आपको यह जानकारी पसंद आयी हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ भी शेयर कीजिये।
FAQ – Frequently Asked Qusetion
- क्या बुद्ध हिन्दू धर्म में भगवान् हैं ?
महात्मा बुद्ध को हिन्दू धर्म में भगवान् विष्णु का अवतार माना जाता है।
- गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कब हुई ?
गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति 531 ईसा पूर्व वैशाख माह की पूर्णिमा को हुई।
- गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ?
गौतम बुद्ध को बिहार के बोधगया में महाबोधि मंदिर के परिसर में स्थित एक पीपल के पेड़ के नीचे ज्ञान की प्राप्ति हुई।
- बौद्ध धर्म के 5 नियम कौन से हैं ?
1-झूठ न बोलना , 2-व्याभिचार न करना, 3-हिंसा न करना, 4-नशा न करना, 5- चोरी न करना
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