Karwa Chauth 2024 : करवा चौथ व्रत विधि, कैसे करें चाँद और पति की पूजा

करवा चौथ तिथि 
बुधवार 20 अक्टूबर 2024  
करवा चौथ व्रत विधि

करवा चौथ कब है 2024

हिंदू पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को रखा जाता है। इस साल करवा चौथ चतुर्थी की तिथि 20 अक्टूबर को सुबह 06:46 से शुरू हो रही है और इसकी समाप्ति 21 अक्टूबर को सुबह 04 बजकर 16 मिनट पर होगी।                                 

करवा चौथ सुहागन महिलाओं का एक त्यौहार जिसमे महिलायें अपने पति की लम्बी आयु के लिए सारा दिन एक निर्जला व्रत का पालन करती हैं। निर्जला व्रत ऐसा व्रत है जिसमे अन्न का एक भी दाना खाये बिना और पानी की एक भी बूँद पिए बिना सारा दिन व्रत रखा जाता है। फिर रात को चाँद निकलने के बाद विधि पूर्वक चाँद की पूजा और पति के दर्शन करने के बाद व्रत पूरा किया जाता है।  

क्या आप जानते हैं- करवा चौथ क्यों मनाया जाता है, करवा चौथ व्रत विधि क्या है,  ज़ाहिर सी बात है नयी पीढ़ी के लोग इन परम्पराओं को सिर्फ फॉलो कर रहे हैं। वो नहीं जानते कि इन त्योहारों, परम्पराओं के पीछे असली कारण क्या है।   

इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए आज हम आपको करवा चौथ से जुड़ी हर बात बताएँगे | आपके हर सवाल का जवाब देने की पूरी कोशिश करेंगे |  

करवा चौथ की कहानी | Karwa Chauth History in Hindi 

करवा चौथ की कहानी यह है |

इस व्रत का नाम करवा चौथ व्रत इसीलिए पड़ा क्यूंकि इस दिन “करवा” नाम की एक स्त्री की अपने पति के प्रति श्रद्धा देखकर यमराज ने उसे वरदान दिया की इस विशेष दिन को तुम्हारे नाम से एक व्रत  किया जायेगा और जो भी स्त्री इस व्रत को पूरी श्रद्धा और विश्वास से करेगी वह सदैव सुहागन रहेगी | तभी से करवा चौथ का व्रत मनाया जाता है |

चलिए आपको बताते हैं कि करवा चौथ की शुरुआत किसने की |  करवा चौथ की शुरुआत इस प्रकार हुई |   पुराने समय में करवा नाम की एक स्त्री थी जो कि अपने पति के साथ एक गाँव में नदी किनारे रहा करती थी | करवा एक पतिव्रता स्त्री थी |

रोज़मर्रा के कामों के दौरान ही एक दिन उसका पति नदी में नहाने गया | नहाते समय उसे एक मगरमच्छ ने पकड़ लिया | उसने मदद के लिए अपनी पत्नी को पुकारा, करवा अपने पति की सहायता के लिए आयी | करवा के सतीत्व में बल था | करवा ने अपने तपोबल से उस मगरमच्छ को बांध दिया |  

इसके बाद करवा अपने पति की  जान बचाने के लिए मृत्यु के देव यमराज के पास गयी | उस समय यमराज चित्रगुप्त के खाते देख रहे थे | करवा ने यमराज से कहा कि मेरे पति को मगरमच्छ ने पकड़ लिया है | आप इस मगरमच्छ को मृत्युदंड दें और मेरे पति को जीवनदान दें |  करवा की इस बात पर यमराज ने कहा कि अभी इस मगरमच्छ की उम्र  बची है इसीलिए मैं इसे समय से पहले नहीं मार सकता | इस पर करवा ने कहा यदि आप मगरमच्छ को मार कर मेरे पति की रक्षा नहीं करोगे तो मैं आपको शाप दे दूंगी |  

करवा की इस बात पर यमराज यह सोचने लगे की करवा के सतीत्त्व के कारण उसको शाप नहीं दिया जा सकता और उसके वचन को अनदेखा भी नहीं कर सकते | इसके बाद उनहोंने मगरमच्छ को यमलोक भेज दिया और करवा के पति को लम्बी आयु का आशीर्वाद दिया |

साथ ही उनहोंने करवा को सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया और कहा की जिस तरह तुमने अपने पतिव्रता बल से अपने पति की रक्षा की उससे मैं बहुत प्रसन्न हूँ | मैं तुम्हें वरदान देता हूँ कि आज के दिन जो भी महिला पुरे विश्वास और श्रद्धा के साथ व्रत करेगी और तुम्हारा पूजन करेगी वह सदा सुहागन रहेगी |  

इसी दिन से करवा चौथ का व्रत किया जाने लगा और उस दिन कार्तिक माह  की चतुर्थी तिथि थी इसी कारण इस व्रत को करवा चौथ व्रत कहा जाने लगा | इस प्रकार  माँ करवा के माध्यम से करवा चौथ व्रत की शुरुआत हुई  

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करवा चौथ कथा | karwa chauth ki katha in hindi

करवा चौथ कथा इस प्रकार है |  

बहुत पुराने समय की बात है एक गाँव में एक साहूकार रहता था | उसके सात बेटे और एक बेटी थी | सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे | वो उसकी सभी ख्वाहिशें पूरी करते थे | सभी भाई बहन एक साथ बैठकर ही खाना कहते थे | बच्चों की उम्र हो जाने पर साहूकार ने अपने सभी बच्चों का विवाह कर दिया |

एक बार की बात है करवा चौथ के व्रत के समय साहूकार की बेटी अपने मायके आयी हुई थी |  सेठानी सहित उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा | व्रत वाले दिन जब रात्रि भोजन का वक़्त हुआ तो भाइयों ने अपनी बहन से भोजन करने के लिए कहा | इस पर उनकी बहन ने बताया कि आज उसका भी करवा चौथ का व्रत है वह चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही खाना खा सकती है |

सबसे छोटे भाई से अपनी बहन को भूखा देखा नहीं गया | वह दूर  जाकर एक पेड़ पर दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है जो दूर से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे चतुर्थी का चाँद है | फिर उसने घर वापिस आकर अपनी बहन से कहा कि देखो चाँद निकल आया है तुम्हारा व्रत पूरा हुआ अब तुम चाँद को अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो |  

उसने अपनी भाभियों से भी कहा कि देखो चाँद निकल आया है तुम भी चाँद को अर्घ्य देकर भोजन कर लो | उसकी भाभियों ने उसे बताया कि चाँद अभी नहीं निकला है तुम्हारे भाई ने धोखे से आग जलाकर उसकी रौशनी को तुम्हें चाँद के रूप में दिखाया है |  लेकिन उसे अपने भाइयों पर भरोसा था उसने अपनी भाभियों की बात नहीं मानी और चाँद को अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गयी।

जैसे ही उसने पहला कौर मुँह में डाला उसे छींक आ गयी | दूसरा कौर मुँह में डालते ही उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही उसने तीसरा कौर मुँह में डाला उसे उसके पति की मृत्यु का समाचार मिला | यह सुनते ही उसे आघात पहुंचा और वह बहुत अधिक पीड़ा में डूब गयी |  

तब उसे उसकी भाभी ने उसे बताया कि तुमने अपने भाइयों की बात पे भरोसा करके चाँद निकलने से पहले ही दीपक को चाँद का अर्घ्य दिया और खाना खा लिया | इसीलिए तुम्हारे पति की मृत्यु हो गयी | यह जानने के बाद वह निर्णय लेती है की वो अपने पति का अंतिम संस्कार नहीं करेगी और अपने पति को पुनर्जीवित करके रहेगी |  

वह अपने पति के शव के पास बैठी रहती है | अपने पति के शव को संभाल के रखती है | समय बीतने के साथ ही उसके पति के शव पर सुई जैसी दिखने वाली घास उग जाती है | इस घास को वह अपने पास एकत्रित करती रहती है |

एक साल बीतने पर फिर से करवा चौथ का दिन आता है | वह फिर से करवा चौथ का व्रत रखती है और शाम होने पर अन्य सुहागिन महिलाओं से विनती करती है कि :-

                                                               यम सूई ले लो   
                                                               पिय सूई दे दो 
                                             मुझे भी अपनी जैसी सुहागिन बना दो | |

                                 लेकिन सभी सुहागिन महिलायें मना कर देती हैं | आखिर में एक सुहागिन उसकी बात मान लेती है | इस प्रकार उसका व्रत पूरा होता है और माँ करवा उसके पति को पुनर्जीवित कर उसे जीवनदान प्रदान करतीं हैं | 

उन्हें सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर देतीं हैं। जो भी सुहागन महिलायें इस व्रत का पालन इसी प्रकार पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ करतीं हैं | वे सदा सुहागन रहतीं हैं और उनका जीवन सभी प्रकार दुखों और कलेशों से मुक्त होकर सुख के साथ बीतता है |  

( नोट :- इस व्रत कथा को अलग-अलग क्षेत्रों में महिलायें अलग-अलग तरह से पढ़ती और सुनती हैं ) 

करवा चौथ पूजन विधि 

करवा चौथ की पूजा बिना किसी रुकावट के भली-भांति हो जाए इसके लिए आवश्यक है कि पूजा करने से पहले karwa chauth puja samagri एकत्र कर के एक स्थान पर रख ली जाए। इससे पूजा बिना किसी विघ्न के पूर्ण होगी और फलदायी होगी।

बहुत सी कामकाजी नवविवाहिता महिलाएं जो अपने परिवार से दूर दूसरे शहर में रहती हैं। उनके मन में यह प्रश्न भी होता है कि पहली बार करवा चौथ कैसे करें। इसका जवाब है कि करवा चौथ पहली बार करना हो या फिर दसवीं बार करवाचौथ की विधि एक ही होती है।

karwa chauth puja samagri

  • सरगी
  • भगवान् गणेश, शिव-पार्वती और कार्तिकेय की प्रतिमा या तस्वीर। इसके साथ ही माँ करवा की तस्वीर।
  • 1 करवा, जो कि मिटटी या तांम्बे  का नलकी वाला बर्तन होता है।
  • गेहूं और चावल करवा में भरने के लिए।
  • पूजा चौकी।
  • गंगाजल
  • लाल कपड़ा। चौकी पर बिछाने के लिए।
  • रोली
  • मौली
  • सिन्दूर
  • अक्षत
  • चन्दन
  • फूलों का हार, साथ में कुछ खुले फूल
  • धूप
  • दीया
  • सुपारी
  • सींकें (सरई), करवा की पानी वाली नलकी में लगाने के लिए।
  • हल्दी
  • कुमकुम
  • श्रृंगार का सामान
  • चाँद को देखने के लिए छलनी

करवा चौथ पूजा विधि इस प्रकार है :

  • करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले सरगी का सेवन करना है फिर सारा दिन निर्जला व्रत रखना है | सरगी एक प्रकार की थाली होती है जिसमें खाने का कुछ सामान फल, मेवे और साथ ही 16 श्रृंगार का सामान होता है | करवा चौथ की सरगी सास, जेठानी या बहन की तरफ से दी जाती है।

  • सभी कामों से निवृत होकर स्नान आदि करके सुंदर सा श्रृंगार करके तैयार हो जाएँ।

  • इसके बाद सबसे पहले श्री गणेश की पूजा अर्चना करें। फिर माँ पार्वती और भगवान् शिव तथा उनके पुत्र कार्तिकेय की पूजा करें।

  • भगवान्  के समक्ष निर्जला व्रत करने का संकल्प लें।

  • अब थोड़े से चावल भिगोकर पीस लें और इसका घोल तैयार करें इस घोल का इस्तेमाल करके कागज़ की मोटी शीट पर  माँ करवा का चित्र बनायें। आजकल बाजार से करवा की रेडीमेड फोटो भी मिल जाती है।

  • अब करवा ( जो कि मिटटी या तांम्बे  का नलकी वाला बर्तन होता है ) में गेहूं और चावल भर दें साथ ही उसके ढक्कन में शक्कर या बुरा भर दें।

  • इसके बाद आठ पूरियां बना लें और साथ में कुछ मीठा जैसे हलवा आदि बना लें।

  • अब शाम के समय सभी सुहागन महिलायें श्रृंगार करके शुभ मुहूर्त में पूर्व दिशा में चौकी रखकर उसके ऊपर नया लाल कपडा बिछाएं फिर चौकी पर गंगा जल का छिड़काव करें और करवा माता की तस्वीर स्थापित करें।

  • सबसे पहले गणेश जी की उपासना करें।

  • इसके बाद करवा माता और शिव पार्वती को रोली, मौली, सिन्दूर, अक्षत, चन्दन और फूल अर्पित करें।

  • इसके बाद चौकी पर वह करवा रखें जिसे आपने सुबह अनाज भरकर रखा था।

  • अब करवा के ऊपर पूजा की सुपारी तथा दक्षिणा रख कर साथ ही एक तेल का दिया भी रखें जिसे हम बाद में जलाएंगे। साथ ही करवा की पानी वाली नलकी में 4 या 7 सींकें (सरई)लगाएं।

  • इसके साथ ही चौकी पर एक दूसरा करवा रखें इस करवे की नलकी में भी 4 या 7 सींकें ( सरई ) लगाएं अब करवे में जल भरें साथ ही इसमें अक्षत, हल्दी, कुमकुम और फूल डालें। अब करवे के ढक्कन में चावल भर के करवे के ऊपर रखेंगे और उसके ऊपर भी एक तेल का दिया रखेंगे।

  • दोनों करवों को माँ करवा की तस्वीर के दोनों तरफ स्थापित करना है।

  • अब सबसे पहले करवा चित्र में स्थित भगवान् गणेश की पूजा करनी है, उन्हें अक्षत और कुमकुम का तिलक लगाना है। साथ ही माँ करवा और चंद्र देव को भी तिलक लगाना है।

  • अब दोनों करवों पर भी तिलक लगाना है इसके बाद माँ करवा की तस्वीर पर फूल माला चढ़ानी है।

  • अब करवों पर स्थित दोनों दीयों को जला दें। कुछ स्थानों पर लोग चौकी पर माँ करवा की तस्वीर स्थापित करने के साथ ही दीयों को जला देते हैं। यह तरीका भी एकदम सही है क्यूंकि भारत में अलग-अलग स्थानों पर त्योहारों-परम्पराओं को मनाने और करने के तरीके अलग-अलग होना आम बात है।

  • अब करवा माँ को श्रृंगार का सामान चढ़ाना है।

  • अब हम माँ को भोग चढ़ाएंगे जो हमने हलवा-पूरी बनाया है ( कुछ स्थानों पर चावल के आटे के लड्डू या पेड़े भी चढ़ाये जाते हैं ) साथ ही नारियल भी चढ़ाएंगे।

  • इसके बाद करवा चौथ व्रत की कथा कहें या सुनें, साहूकार के 7 बेटों वाली कथा जो की ऊपर दी गयी है।

  • कथा पूरी होने के बाद हम करवा फेरते हैं। माँ करवा की तस्वीर के बायीं तरफ रखे करवे को हम दायीं तरफ रख देंगे और दायीं तरफ रखे करवे को हम बायीं तरफ रखेंगे इस तरह करवा फेरा जाता है। हरयाणा, पंजाब, राजस्थान के कुछ स्थानों पर एक समूह में बैठकर करवा चौथ व्रत करने की परम्परा है, इन स्थानों पर करवे के स्थान पर थाली फेरी जाती है।

  • इसके बाद माँ करवा के माथे पर 7 बार सिन्दूर चढ़ाना है और सातों बार उस सिन्दूर को फिर से अपनी मांग पे लगाना है। इसे सुहाग लेना कहा जाता है।

  • इस तरह करवा चौथ की पूजा पूरी होती।

  • अगर आप अकेले करवा चौथ का व्रत रख रहीं हैं तो अपने पति को जरूर पूजा में शामिल करें अगर आप व्रत कथा अपने पति से ही सुनेंगी तो और भी अच्छा रहेगा। कुछ स्थानों पर बुजुर्ग महिलाओं द्वारा करवा चौथ व्रत कथा सुनाने  की परम्परा है।

  • पूजा पूरी होने के बाद आरती करें पहले गणेश भगवान् की फिर माँ पार्वती की आरती उसके बाद भगवान् शिव की आरती करें।

  • आरती होने के बाद माँ करवा से प्रार्थना करें कि माँ हमारे सुहाग की लम्बी आयु हो। पूजा में हमसे कोई भूल चूक हुई हो तो हमें माफ़ करें।

  • फिर घर के सभी सदस्यों को आरती दें और फिर अपने सभी बड़ों का आशीर्वाद ले लें।

  • पूजा से पहले एक करवा में हमने अनाज भरा है इस अनाज को अगले दिन किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान दे सकते हैं।

  • अब चाँद के निकलने पर उत्तर पश्चिम दिशा की और मुख कर के चाँद की पूजा करें इसके बाद उस करवे से चाँद को अर्घ्य दें जो करवा जल भर के पूजा की चौकी पे रखा था और फिर छलनी से चांद को देखने के बाद पति को देखें. इसके बाद पति की पूजा करें।

  • इसके बाद एक दूसरे करवे या गिलास से पहले पति को पानी पिलाएं और फिर पति के हाथ से उसी करवे से पानी पीएं. इस प्रकार करवा चौथ का व्रत पूरा होता है।

करवा चौथ पर चाँद की पूजा कैसे करें

करवा चौथ सुहागन महिलाओं का त्यौहार है। महिलायें यह त्यौहार अपने पति के स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए रखती हैं। इस व्रत में माँ करवा की पूजा की जाती है जिन्होंने अपने पतिव्रता होने के बल से अपने पति की जान बचाई थी और यमराज को अपना निर्णय बदलने पर मजबूर कर दिया था।

यह व्रत दांपत्य जीवन में खुशहाली लाता है। करवा चौथ पर चाँद की पूजा का विशेष महत्व है। चाँद की पूजा के बिना करवा चौथ का व्रत पूरा नहीं होता। तो चलिए जानते हैं करवा चौथ पर चाँद की पूजा विधि और मंत्र।

करवा चौथ पर चाँद की पूजा विधि 

करवा चौथ व्रत कथा पूरी होने के बाद चाँद निकलने पर चाँद की पूजा करी जाती है। करवा चौथ का चाँद निकलने पर महिलाओं को सोलह शृंगार के साथ चाँद की पूजा करनी चाहिए।  

  • Karwa chauth thali – करवा चौथ की थाली तैयार करने के लिए करवे में जल, कलावा, कुछ मीठा, फूल, धूप, दिया, अक्षत, कुमकुम, छलनी यह सब सामग्री रख कर तैयार करें। साथ में पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलने के लिए एक गिलास या लौटे में भी पानी रख लें। 

  • Karwa chauth thali को रंगोली के रंगों की सहायता से सजा लें या बाजार से भी रेडीमेड नक्काशी और सजावट के साथ करवा चौथ की थालियां मिलती हैं।

  • चाँद निकलने पर घर की छत या बालकनी में आकर सबसे पहले थाली में रखे दिए को जला लें उसके बाद करवे में रखे जल से चाँद को अर्घ्य देना है। चाँद को अर्घ्य देते समय जल की धार नहीं टूटनी चाहिए। 

  • चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद चाँद के सामने हाथ जोड़ कर खड़े-खड़े गोल घूमते हुए तीन परिक्रमा करें। 

  • इसके बाद एक स्थान को जल से शुद्ध करने के बाद वहां कुमकुम (रोली) लगाकर अक्षत और कलावा चढ़ाएं। इसके बाद चंद्र देव का स्मरण करते हुए फूल चढ़ाएं। साथ ही चंद्रदेव को मीठा भी चढ़ाएं।

  • इसके बाद धूप जलाकर चंद्र देव को धूप दिखाएँ और पूजा की थाली से चन्द्रमा की आरती उतारें। 

  • फिर छलनी में दिया रख कर उससे चाँद को देखें और छलनी को नीचे लाते हुए उसी छलनी से अपने पति को देखें और फिर पति के हाथों से पानी पीकर अपना व्रत पूरा करें।

इस प्रकार चाँद की पूजा करके अपने करवा चौथ व्रत का समापन करें। कई स्थानोंपर करवा चौथ में चाँद की पूजा के बाद पति की पूजा करने की भी परम्परा है।   

करवा चौथ का व्रत 12 वर्ष या 16 वर्ष तक हर साल किया जाता है।   यह व्रत 12 वर्ष तक अथवा 16 वर्ष तक निरंतर प्रति वर्ष किया जाता है। अवधि पूरी होने के पश्चात इस व्रत का उद्यापन (उपसंहार) किया जाता है। जो सुहागिन स्त्रियाँ आजीवन रखना चाहें वे जीवनभर इस व्रत को कर सकती हैं।

इस व्रत के समान सौभाग्यदायक व्रत अन्य कोई दूसरा नहीं है। अतः सुहागिन स्त्रियाँ अपने सुहाग की रक्षार्थ इस व्रत का सतत पालन करें।  

करवा चौथ के व्रत में पति की पूजा कैसे करें

रात को चाँद निकलने पर चाँद की पूजा करने के बाद करवा चौथ का व्रत पूरा होता है। कई जगहों पर रात को चाँद की पूजा करने के बाद पति की भी पूजा करने की परम्परा है। आज हम आपको  बताएँगे की करवा चौथ के व्रत में पति की पूजा कैसे की जाती है। 

करवा चौथ में पति की पूजा 

करवा चौथ में चाँद निकलने पर चाँद की पूजा करके छलनी से चाँद को देखने के बाद उसी छलनी से पति को देखें। इसके बाद अपने पति को कुमकुम का तिलक लगाएं और उन पर अक्षत का छिड़काव करे। अपने पति देव को तिलक लगाने के लिए अनामिका (ring finger) और अंगूठे से कुमकुम उठायें और उनके माथे पर तिलक लगा दें। 

इसके बाद अपने पति को करवे से पानी पिलायें। फिर पति के हाथों खुद भी पानी पियें ( इसके लिए जिस करवे से चाँद को अर्घ्य दिया गया है उसके अलावा दूसरे करवे का इस्तेमाल करें )।  फिर उनके पैर छूकर उनका आशीर्वाद लें।

व्रत पूरा होने के बाद अपने रात में खाने के लिए जो भी भोजन बनाया है। उससे खाने की थाली सजाकर वह भोजन भगवान् को समर्पित कर दें। फिर खुद भी भोजन ग्रहण कर लें। अगले दिन वह भोजन किसी गरीब को दान कर दें या गो माता को खिला दें।  इस तरह करवा चौथ का व्रत संपन्न होता है। 

हमारी मनोकामना यही है कि आप इसी प्रकार अपनी परम्पराओं का पालन करते हुए सुखमय जीवन जीएं। यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आया तो इसे शेयर जरूर करें और इसी तरह की अन्य जानकारी के लिए हमारे साथ जुड़े रहिये।  

FAQ – Frequently Asked Questions

1- करवा चौथ में क्या खाना चाहिए ?

करवा चौथ एक निराजल और निराहार व्रत होता है। इस व्रत में कुछ भी खा-पी नहीं सकते। माना जाता है कि यदि करवा चौथ के व्रत वाले दिन एक बूँद पानी भी अगर मुँह में चला जाय तो इससे व्रत टूट जाता है।

2 – पूजा के बाद करवे का क्या करें ?

पूजा से पहले जिस करवे में हमने अनाज भरा है उसको अगले दिन किसी ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को दान दे सकते हैं | यदि आपने मिटटी के करवे के स्थान पर ताम्बे के करवे का इस्तेमाल किया है तो उसमे रखा सामान दान कर के आप उस करवे का इस्तेमाल अगली पूजा पर कर सकते हैं। यदि मिटटी का करवा है तो आप उसे किसी पेड़ की जड़ में रख दें या नदी में भी विसर्जन सकते हैं।

3 – सरगी कितने बजे खाई जाती है ?

सरगी सूर्योदय से पहले खाई जाती है। इसीलिए सरगी सूर्योदय से पहले 4-5 बजे खा लेनी चाहिए।

4 – करवा चौथ के दिन चाय पी सकते है क्या ?

करवा चौथ के व्रत में कुछ भी खा या पी नहीं सकते। क्यूंकि करवा चौथ एक निराहार और निराजल व्रत होता है। करवा चौथ का व्रत पूरा होने के बाद आप चाहें तो चाय पी सकते हैं। लेकिन उपवास के बाद सात्विक भोजन या फलाहार लेना सबसे अच्छा होता है।

(Disclaimer: The material on this website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

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