होली का त्यौहार! जानिए कैसे हुई होली की शुरुआत

holi ka tyohar

kids festival, PavanPrasad_IND, Pixabay

 हैलो दोस्तों !  कैसे हैं आप ?  उम्मीद  करते हैं आप सभी अच्छे होंगे। तो साथियों आज हम बात करेंगे होली के त्यौहार की। आप सभी को होली 2024 की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ। आज हम आपको होली के त्यौहार से जुड़ी हर जानकारी बताएँगे। होली से जुड़े हर पहलू पर प्रकाश डालेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं। 

होली का त्यौहार

होली का त्यौहार भारत का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार बसंत के महीने में मनाया जाता है। इस  त्यौहार का सम्बन्ध हिन्दू धर्म  से है। यह त्यौहार भगवान् के प्रति भक्त की निष्ठा को तो दर्शाता ही है साथ ही यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक भी है।होली का त्यौहार लोगों को आपसी द्वेष भूलकर आपस में मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने के लिए प्रेरित  करता है।

होली का त्यौहार मुख्य रूप से दो दिन मनाया जाता है। पहले दिन होलिका जलाई जाती है इसे होलिका दहन भी कहा जाता है। इसके लिए किसी सार्वजनिक स्थल पर जमीन में एक पेड़ की सूखी टहनी गाड़ दी जाती है और उसके चारों तरफ लकड़ी लगा दी जाती है। लकड़ियों के साथ ही इसमें उपले ( कंडे, पाथियां, गोहे ) भी डाले जाते हैं।   

होलिका दहन से पहले उस क्षेत्र के लोगों द्वारा इसकी पूजा की जाती है और ईश्वर से अपनी इच्छापूर्ति की प्रार्थना भी करी जाती है। होलिका दहन के समय सभी लोग एकत्रित होते हैं और होली जलाई जाती है। 

भारत में कई स्थानों पर होलिका दहन में भरभेलिए जलाने की भी परम्परा है। भरभेलिए गाय के गोबर से बने छोटे उपले होते हैं। इनके बीच में एक छेद होता है। इस छेद में रस्सी डालकर एक माला बनाई जाती है। सात भरभेलिए से एक माला बनाई जाती है और होलिका दहन के समय बहनें इस माला को अपने भाइयों के सिर से सात बार घुमाकर होलिका दहन के लिए ढेर लगाई गयी लकड़ियों में डाल देती हैं और यह माला भी होलिका के साथ जला दी जाती है। 

इसके पीछे मान्यता है की ऐसा करने से भाइयों पर लगी बुरी नज़र भी होली के साथ जल जाती है। होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक भी माना जाता है। होलिका दहन के अगले दिन रंगों वाली होली खेली जाती है। भारत में इसे कई स्थानों पर अलग-अलग नामों से जाना जाता है जैसे धुलेंडी, धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन।

इस दिन लोग एक दूसरे को रंग, गुलाल लगाते हैं। ऐसी मान्यता है की इस दिन लोग  पुरानी दुश्मनी भूलकर फिर से दोस्त बन जाते हैं। जगह-जगह पर ढोल बजाकर होली के गीत गाये जाते हैं। 

रंगों वाली होली खेलने के लिए लोग खुली सड़कों, पार्कों, घरों आदि में पिचकारी, पानी के गुब्बारे और सूखे रंगों का इस्तेमाल करते हैं। आजकल के सामाजिक माहौल में सोसाइटी या कॉलोनी के लोग होली वाले दिन मिलकर D.J. की व्यवस्था कर लेते हैं, फिर पूरी सोसाइटी एक साथ मिलकर होली खेलती है। 

दोपहर तक एक-दूसरे को रंग लगाने, पानी के गुब्बारे मारने और पानी की पिचकारी से भिगो देने का दौर चलता रहता है। फिर दोपहर बाद लोग अपने घर जाकर नहा कर कुछ देर आराम करने के बाद शाम को फिर से एक दूसरे के घर मिलने जाते हैं। होली  घर आये मेहमानों को गुझिया, मिठाई, नमकीन आदि परोसी जाती है। कई जगहों पर कांजी के बड़े  खाने-खिलाने का भी रिवाज है। 

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होली कब है

होली (Holi) का त्यौहार हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और होलिका दहन भद्रामुक्त पूर्णिमा तिथि में किया जाता है। क्यूंकि शास्त्रों में भद्राकाल को अशुभ माना जाता है। तो चलिए दोस्तों आपको बताते हैं कि हिन्दू पंचांग के अनुसार होली 2024 कब है ?

  • होली तिथि – बुधवार 25 मार्च 2024 

  • होलिका दहन – मंगलवार 24 मार्च 2024

  • होलिका दहन शुभ मुहूर्त – 24 मार्च 2024 को 11:13 pm से 12:27am तक 

होलिका दहन का समय 2024: हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च 2024 को सुबह 09:54 am पर शुरू होगी और 25 मार्च 2024 को दोपहर 12:29 pm पर समाप्त होगी। 

होलिका दहन की पूजा सामग्री 

एक लोटा जल, नारियल, अक्षत, एक फूलों का हार, रोली, गुलाल, गुड़,  हल्दी, गेहूं की बालियां ।

होली की शुरुआत कैसे हुई 

होली भारत का एक बहुत प्राचीन त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के पौराणिक काल से ही मनाया जाता है। तो साथियों आज हम आपको बताएँगे कि होली की शुरुआत कैसे  हुई। 

होली पूरे भारत में मनाया जाने वाला त्यौहार है लेकिन दक्षिण भारत की बजाय विशेषकर उत्तर भारत में होली का त्यौहार बड़ी धूम धाम से जाता है। होली के शुरू होने की कथा भी उत्तर भारत से ही सम्बन्ध रखती है।  तो चलिए साथियों आपको देते हैं, होली के इतिहास से जुड़ी जानकारी। 

उत्तर प्रदेश का शहर झाँसी है। झाँसी शहर रानी लक्ष्मीबाई की शौर्य गाथा की वजह से भी प्रसिद्ध है। होली की शुरुआत झाँसी मुख्यायलय से करीब 70 किलोमीटर दूर स्थित प्राचीन नगर एरच में हुई थी। पुराणों के अनुसार एरच नगर उस समय एरिकच्छ नाम से जाना जाता था। 

होलिका दहन कहानी: एरिकच्छ उस समय दैत्यराज हिरण्यकश्यप की राजधानी थी। दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने घोर तपस्या करके भगवान  ब्रह्म्मा को प्रसन्न कर दिया फिर उनसे वर माँगा कि “मेरी मृत्यु न दिन में हो न रात में, न अस्त्र से हो न शस्त्र से, न मनुष्य से हो न पशु से, न जमीन पे हो न आकाश में, न घर के अंदर हो न घर के बाहर।” इस प्रकार उसने ब्रह्म्मा जी से अप्रत्यक्ष रूप से अमर होने का ही वरदान मांग लिया।

यदि वह ब्रह्म्मा जी से सीधे ही अमर होने का वरदान मांगता तो ब्रह्म्मा जी उसे ऐसा वर ना देते क्यूंकि पौराणिक नियमों के अनुसार इस धरती पर जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु तय है।इस प्रकार हिरण्यकश्यप इस अप्रत्यक्ष अमरता रूपी वरदान को पाकर अत्यंत बलशाली और अभिमानी हो गया।

वह स्वयं को ही भगवान मानने लगा। और उसने अपनी प्रजा को अपनी पूजा करने के लिए मजबूर किया।फिर हिरण्यकश्यप के घर जन्म हुआ प्रह्लाद का। 

प्रह्लाद जन्म से ही भगवान् विष्णु का भक्त था। उसने हिरण्यकश्यप की बात मानने से इंकार कर दिया और भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करने लगा।इससे हिरण्यकश्यप बहुत क्षुब्ध हुआ। और उसने प्रह्लाद को मारने का षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया। 

हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद  मारने के लिए बहुत प्रयत्न किये किन्तु वह असफल रहा। उसने प्रह्लाद को हाथी से कुचलवाया, ऊँचे पहाड़ से बेतवा नदी में धक्का दे दिया। किन्तु हर बार भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद बच गया। कई  प्रयासों में असफल होने  बाद अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका के साथ मिलकर प्रह्लाद को मारने की योजना बनाई। 

होलिका के पास ऐसी चुनरी थी जिसे पहन कर वह आग में बैठ सकती थी और उस पर आग का कोई असर न होता। अब एरच (एरिकच्छ) नगर में पहाड़ पर एक आग लगाई गयी और होलिका प्रह्लाद को लेकर उस  आग में बैठ गयी। लेकिन भगवान विष्णु की ऐसी कृपा हुई कि हवा चली और चुनरी होलिका के ऊपर से उड़कर भक्त प्रह्लाद के ऊपर आ गयी इस प्रकार भक्त प्रह्लाद फिर से बच गया और होलिका का अंत  हो गया। 

इस समयगोधूली बेला हो रही थी यानि दिन और रात के बीच का समय न दिन न रात।तभी भगवान विष्णु ने क्रोधित होकर नरसिंह का अवतार लिया और भगवान् विष्णु के नरसिंह रूपी अवतार ने डिकोली स्थित मंदिर की चौखटपर अपने नाखूनों से हिरण्यकश्यप का वध  कर दिया। इस प्रकार हिरण्यकश्यप और होलिका का अंत हो गया।

उसी दिन से होलिका दहन और भक्त प्रह्लाद के बचने की ख़ुशी में अगले दिन रंगों वाली होली खेलने की शुरुआत हो गयी।

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भगवान् नरसिंह ने रखी ब्रह्म्मा जी के वरदान की मर्यादा

भगवान् नरसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध करते समय ब्रह्म्मा जी के वरदान की भी मर्यादा रखी। नरसिंह अर्थात मानव रूपी सिंह न मानव न पशु। हिरण्यकश्यप का वध न दिन में किया न ही रात में। गोधुली बेला में जो न दिन होता है न ही रात, न अस्त्र से न ही शस्त्र से अपने नाखूनों से, हिरण्यकश्यप का वध न अंदर न ही बाहर उसका वध मंदिर की चौखट पर किया, और नरसिंह ने हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रख कर उसका वध किया यानी कि हिरण्यकश्यप उस समय न ही जमीन पर था और न ही आसमान में। 

इस प्रकार भगवान् नरसिंह ने ब्रह्म्मा जी के वरदान की लाज भी रखी और इस पौराणिक नियम का पालन भी हुआ जिसके अनुसार, “जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु तय है।” हिरण्यकश्यप का वरदान भी उसे मृत्यु से नहीं बचा सका और इस प्रकार दुष्ट हिरण्यकश्यप के अत्याचारों से लोग मुक्त हुए ।

होली कितने देशों में मनाई जाती है 

होली केवल भारत में ही नहीं मनाई जाती बल्कि दुनिया के दूसरे देशों में भी  मनाई  जाती है। भारत और नेपाल के साथ-साथ यह त्यौहार उन देशों में भी मनाया जाता है जहाँ हिन्दू रहते हैं।

दुनिया के कई देशों में यह त्यौहार बहुत ही हर्षोउल्लास और धूमधाम के साथ मनाया जाता है। भारत और नेपाल के अलावा बांग्लादेश, पाकिस्तान, मॉरीशस और श्री लंका में भी भारतीय  परंपरा के अनुरूप ही होली मनाई  जाती है। 

इंग्लैंड में भी प्रवासी भारतीय होली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाते हैं। इस जश्न में उनके साथ इंग्लैंड के नागरिक भी शामिल होते हैं। साथ ही अमेरिका में बसे भारतीय भी वहां के नागरिकों के साथ मिलकर बड़े ही उत्साह के साथ होली मनाते हैं।

होली का त्यौहार साऊथ अफ्रीका में भी बड़े ही उत्साह के साथ मनाया जाता है। साऊथ अफ्रीका के स्थानीय लोग भी वहां बसे भारतियों के साथ इस त्यौहार में शामिल होते हैं।  

यूरोपीय देश स्पेन, जर्मनी, फ्रांस में भी होली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते हैं और रंगीन पानी से एक दूसरे को भिगो देते हैं और इस त्यौहार को खूब एन्जॉय करते हैं।

कनाडा में रहने वाले भारतीय भी बड़ी ही धूमधाम से होली  मनाते हैं। इसमें  उनके साथ स्थानीय निवासी भी शामिल होते हैं और इस त्यौहार का लुत्फ़ उठाते हैं। 

होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इस त्यौहार से हमे सन्देश मिलता है की भगवान् हमेशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। होलिका दहन के अगले दिन रंगों वाली होली खेलते समय लोग आपसी द्वेष और दुश्मनी भूलकर एक दूसरे को रंग लगाते हैं और होली का त्यौहार मनाते हैं। यह त्योहार हमें सामाजिक सद्भाव का भी सन्देश देता है।

(Disclaimer: The material on this website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

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