अलेक्जेंडर ऑफ इंडिया जी हाँ सही पढ़ा आपने भारत के इतिहास में ऐसे अनेकों राजा हुए हैं जो कि बहुत ही महान शासक हुए हैं। जिनमे ललितादित्य किंग ऑफ़ कश्मीर भी एक ऐसे ही एक शासक हैं।

ललितादित्य किंग ऑफ़ कश्मीर | अलेक्जेंडर ऑफ इंडिया
ललितादित्य मुक्तापीड (अलेक्जेंडर ऑफ इंडिया) इनका परचम बहुत दूर – दूर तक लहराया करता था । कश्मीर में इनका राज्यकाल 724 से 761 ई तक।
लेकिन ये एक बहुत बड़ी विडंबना है कि हमलोगों में से बहुत कम लोगों ने ये नाम पहले कभी सुना होगा । क्योंकि भारतीय इतिहास की बहुत सी प्रमुख बातें न जाने क्यों हमसे छुपाई गयी।
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महाराजा ललितादित्य को भारत की इतिहास की किताबों में तो नहीं पढ़ाया जाता है । परंतु ब्रिटिश इतिहास में इन्हें आज भी पढ़ाया जाता है और बहुत ही सम्मान के साथ इन्हें अलेक्जेंडर ऑफ इंडिया महाराजा ललितादित्य मुक्तापीड के नाम से पढ़ाया जाता है । कुछ लोग इन्हें ललितादित्य किंग ऑफ़ कश्मीर के नाम से भी जानते हैं।
कश्मीर के कर्कोटा वंश के हिन्दू सम्राट थे। उनके काल में कश्मीर का विस्तार मध्य एशिया और बंगाल तक पहुंच गया। उन्होने अरब के मुसलमान आक्रान्ताओं को सफलतापूर्वक दबाया तथा तिब्बती सेनाओं को भी पीछे धकेला।
उन्होने राजा यशोवर्मन को भी हराया जो हर्ष का एक उत्तराधिकारी था। उनका राज्य पूर्व में बंगाल तक, दक्षिण में कोंकण तक पश्चिम में तुर्किस्तान और उत्तर-पूर्व में तिब्बत तक फैला था। उन्होने अनेक भव्य भवनों का निर्माण किया।
कार्कोट राजवंश की स्थापना दुर्र्लभवर्धन ने की थी। दुर्र्लभवर्धन गोन्दडिया वंश के अंतिम राजा बालादित्य के राज्य में अधिकारी थे। बालादित्य ने अपनी बेटी अनांगलेखा का विवाह कायस्थ जाति के एक सुन्दर लेकिन गैर-शाही व्यक्ति दुर्र्लभवर्धन के साथ किया।
कार्कोटा एक नाग का नाम है ये नागवंशी कर्कोटक कायस्थ क्षत्रिय थे। प्रसिद्ध इतिहासकार आर सी मजुमदार के अनुसार ललितादित्य ने दक्षिण की महत्वपूर्ण विजयों के पश्चात अपना ध्यान उत्तर की तरफ लगाया जिससे उनका साम्राज्य काराकोरम पर्वत शृंखला के सूदूरवर्ती कोने तक जा पहुँचा।
साहस और पराक्रम की प्रतिमूर्ति सम्राट ललितादित्य किंग ऑफ़ कश्मीर का नाम कश्मीर के इतिहास में सर्वोच्च स्थान पर है। उनका सैंतीस वर्ष का राज्य उनके सफल सैनिक अभियानों, उनके अद्भुत कला-कौशल-प्रेम और विश्व विजेता बनने की उनकी चाह से पहचाना जाता है।
लगातार बिना थके युद्धों में व्यस्त रहना और रणक्षेत्र में अपने अनूठे सैन्य कौशल से विजय प्राप्त करना उसके स्वभाव का साक्षात्कार है। ललितादित्य ने पीकिंग को भी जीता और 12 वर्ष के पश्चात् कश्मीर लौटे।
कश्मीर उस समय सबसे शक्तिशाली राज्य था। उत्तर में तिब्बत से लेकर द्वारिका और उड़ीसा के सागर तट और दक्षिण तक, पूर्व में बंगाल, पश्चिम में विदिशा और मध्य एशिया तक कश्मीर का राज्य फैला हुआ था जिसकी राजधानी प्रकरसेन नगर थी। ललितादित्य मुक्तापीड की सेना की पदचाप अरण्यक (ईरान) तक पहुंच गई थी।
ऐसे महान सेवक के विषय में हम लोगों को नही पढ़ाया जाता है। इसके पीछे क्या कारण है ये तो मैं नहीं जानता मगर हाँ इतना जरूर जनता हूँ कि हमारी 800 साल की गुलामी का कारण शायद यही है कि हमने ऐसे लोगों को भुला दिया और कुछ बौने लोगों को बहुत ऊँचा स्थान दे दिया ।
जबसे मैंने भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता श्री सुधांशु त्रिवेदी जी के मुँह से ये नाम सुना मैंने बहुत सारी पुस्तकें खंगाली , इंटरनेट पर गूगल व और अनेकों माध्यमों से बहुत प्रयास के बाद इतनी सी जानकारी मिल पाई ।
मेरा आप सभी पाठकों से निवेदन भी है कि अगर इनके विषय में आपके पास कोई जानकारी है तो कृपया हमसे संपर्क [email protected] करें। आपके द्वारा दी गयी जानकारी को आपके नाम के साथ प्रकाशित किया जायेगा।
अलेक्जेंडर ऑफ इंडिया महाराजा ललितादित्य मुक्तापीड को कोटिशः नमन ।
जय हिंद , जय भारत
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