
महावीर स्वामी जैन समाज के 24वें तीर्थंकर हैं। इस वर्ष महावीर जयंती ( Mahaveer Jayanti 2024 ) 21अप्रैल 2024 को मनाई जाएगी। इस अवसर पर सम्पूर्ण भारत में जैन मंदिरों को सजाया जाता है और जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं। भगवान् महावीर स्वामी ने इसी तिथि की इस धरती पर जन्म लिया था।
जिस युग में इस धरती पर हिंसा, पशु बलि जैसे कृत्य बहुत बढ़ गए उसी युग में भगवान् महावीर स्वामी इस धरती पर आये। उन्होंने हिंसा के खिलाफ लोगों को जागरूक किया और समाज को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। जैन ग्रंथो के अनुसार समय-समय पर धर्म के उत्थान के लिए तीर्थंकरों का जन्म होता है। आज इस लेख में हम आपको भगवान् महावीर के जीवन से जुड़ी हर बात बताएँगे।
भगवान् महावीर का जन्म कब और कहाँ हुआ था
भगवान् महावीर का जन्म 599 ई० पू० में वैशाली राज्य के कुंडग्राम में हुआ था। उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम सिद्धार्थ था जो कि एक कबीले के प्रमुख थे और माता का नाम त्रिशला था जो कि लिच्छवी की राजकुमारी थीं।
महावीर स्वामी का प्रारंभिक जीवन
राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ महावीर स्वामी का जन्म होने पर उनका राज्य हर प्रकार से उन्नति करने लगा। राजा को हर और से शुभ समाचार प्राप्त होने लगे। अपने बालक के इस सौभाग्य को देखते हुए उनका नाम वर्धमान रख दिया गया। महावीर स्वामी की माता का नाम त्रिशला था इसीलिए इन्हें त्रिशलानंदन भी कहा जाता है। महावीर स्वामी के बड़े भाई का नाम नन्दिवर्धन था। उनकी एक बड़ी बहन भी थी जिसका नाम सुदर्शना था। वर्धमान ( महावीर स्वामी ) अपने भाई-बहनों में सबसे छोटे थे। वे जन्म से ही श्रुतज्ञान, मतिज्ञान व् अवधिज्ञान से युक्त थे।
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महावीर स्वामी का विवाह
महावीर स्वामी के विवाह को लेकर सदैव ही मतभेद की स्थिति रही है। जैन शास्त्र “जिनवाणी” के अनुसार महावीर स्वामी बाल ब्रह्मचारी थे। उनका कभी विवाह नहीं हुआ। जैन शास्त्र “जिनवाणी” के अनुसार 24 तीर्थंकरों में से 5 तीर्थंकर पूरा जीवन अविवाहित ही रहे। इन पांचों तीर्थंकरों को पंच बालयति के नाम से भी जाना जाता है और महावीर स्वामी भी इन पांच तीर्थंकरों में से एक हैं।
वहीं दूसरी तरफ समाज में एक मान्यता यह भी है कि भगवान् महावीर स्वामी का विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ था। उनकी एक पुत्री भी थी। जिसका नाम जिसका नाम प्रियदर्शना था।
किन्तु जैन मत के लोगों का कहना है कि जिनवाणी दिगंबर जो कि जैन धर्म का प्रमुख ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ के अनुसार भगवान् महावीर स्वामी जैन धर्म के उन पांच तीर्थंकरों में से एक हैं जिनका कभी विवाह नहीं हुआ।
महावीर स्वामी का ग्रह त्याग
वर्धमान ( महावीर स्वामी ) का जन्म एक राजकुल में हुआ था इसीलिए उनहोंने अपना बाल्यकाल सुखपूर्वक व्यतीत किया। 30 वर्ष की आयु तक वे घर में ही रहे किन्तु सांसारिक जीवन में उन्हें आंतरिक शांति नहीं मिली। अपने माता पिता की मृत्यु होने के पश्चात्त उनके मन में वैराग्य की भावना उत्पन्न हो गयी।
इसके बाद उन्होंने सन्यास के लिए अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से आज्ञा मांगी। किन्तु उनके बड़े भाई ने उनसे दो वर्ष तक घर में रुकने के लिए कहा। अपने बड़े भाई की बात का मान रखते हुए वे दो वर्ष तक रुके। इसके बाद उनहोंने अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से आज्ञा लेकर 30 वर्ष की आयु में ग्रह त्याग कर दिया और सन्यास धारण कर लिया। महावीर स्वामी ने 12 वर्ष तक कठोर तपस्या की।
जैन ग्रन्थ ’आचरांग सूत्र’ के अनुसार सन्यास धारण करने के पश्चात्त उनहोंने सबसे पहले अपने राजसी वस्त्रों का त्याग कर दिया और सन्यासी वस्त्र धारण किये। वे सबसे पहले कुम्भहार गाँव पहुंचे और वहीँ पर अपनी साधना शुरू की। साधना के प्रारंभ में कुछ समय तक तो महावीर स्वामी ने वस्त्र धारण किये किन्तु कुछ समय पश्चात उन्होंने वस्त्रों का भी त्याग कर दिया और वे दिगंबर साधू कहलाये। दिगंबर का अर्थ है – दिशाएं ही जिसक वस्त्र हों।
भगवान् महावीर को जिनेन्द्र क्यों कहा जाता है
“जय जिनेन्द्र” जैन धर्म के अनुयायियों द्वारा प्रयोग किया जाने वाला शब्द है। इस शब्द का अर्थ होता है जिनेन्द्र भगवान को नमस्कार। उन्हें जिनेन्द्र इसीलिए कहा जाता है क्योंकि उनहोंने अपने तन, मन, वाणी और इन्द्रियों को जीत लिया था और ज्ञान की प्राप्ति कर ली थी। महावीर स्वामी ने कठोर तप के द्वारा अपनी समस्त इन्द्रयों, इच्छाओं आदि पर विजय प्राप्त कर ली और वे जिनेन्द्र अर्थात विजेता कहलाये।
यहीं से उनके द्वारा प्रचारित धर्म को “जैन धर्म” कहा जाने लगा और उनके अनुयायी “जैन” कहलाये।भगवान् महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं। जैन धर्म के अनुसार तीर्थंकर वे व्यक्ति होते हैं जो सभी कर्मों को जीत लेते हैं और मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। महावीर स्वामी जैन धर्म के सबसे प्रसिद्ध तीर्थंकर हैं और उन्हें जैन धर्म के संस्थापक भी माना जाता है।
महावीर को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ
महावीर स्वामी ने जब 30 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई नन्दिवर्धन से आज्ञा लेकर सन्यास धारण किया। उसके बाद महावीर स्वामी ने 12 वर्षों की कठिन तपस्या और साधना की जिसके बाद उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। जुम्भियग्राम में रिजुपलिका नदी के तट पर साल वृक्ष के नीचे महावीर स्वामी को कैवल्य अर्थात सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हुई। सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति के बाद उन्हें निम्नलिखित नामों से भी जाना जाने लगा।
- जिन (विजेता )
- केवलिन
- निर्गन्थ ( बंधन रहित )
- अर्ह
महावीर ने कौन सा धर्म बनाया
महावीर ने ग्रह त्याग किया और कठिन साधना करी जिसके बाद उन्हें सर्वोच्च ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद उनहोंने समाज में ज्ञान का प्रसार किया और समाज को अहिंसा का पाठ पढ़ाया। उनहोंने समाज में प्रेम और करुणा का प्रसार किया।
महावीर स्वामी ने जैन धर्म की स्थापना नहीं करी वे जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर अर्थात गुरु थे उनसे पहले जैन धर्म के 23 तीर्थंकर थे। उनके अनुयायी ही जैनी कहलाये। उनहोंने सत्य, अहिंसा, और करुणा को जैन धर्म का आधार बनाया। जैन धर्म के अनुसार इस धरती के सभी प्राणियों में आत्मा है और सभी को सम्मान और दया की दृष्टि से देखना चाहिए। जैन धर्म अनुयायियों का मानना है कि मोक्ष प्राप्त करने के लिए आत्मा को शुद्ध करना और सभी कर्मों का त्याग कर देना आवश्यक है। जैन धर्म के अनुयायी जैन धर्म के इन पांच महाव्रतों का पालन करते हैं:
- सत्य
- अहिंसा
- ब्रह्मचर्य
- अस्तेय
- अपरिग्रह
भगवान् महावीर की शिक्षा क्या थी
भगवान् महावीर ने अपने उपदेशों में सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य,अस्तेय और अपरिग्रह की शिक्षा दी। उनहोंने इन्हीं शिक्षाओं को अपने अपने अनुयायियों तक पहुँचाया। स्वामी जी अनुसार यदि आपने इन पांच सिद्धांतों का पालन किया तो जीवन में सफलता मिलेगी और अंत में मोक्ष की प्राप्ति होगी।
- सत्य – महावीर जी का यह सिद्धांत हमें जीवन जीने की सीख देता है। यदि आप सत्य के मार्ग पर चलेंगे तो रास्ते में रुकावटें तो अवश्य आएँगी किन्तु यदि अपने मार्ग पर अटल रहे तो अंत में जीत अवश्य होगी।
- अपरिग्रह – अपरिग्रह का अर्थ होता है “कोई भी वास्तु संचित न करना।” जैन धर्म में सांसारिक वस्तुओं के संचय से दूर रहने के लिए कहा गया है। इस शिक्षा का पालन करते हुए अधिकारात्मकता के भाव से मुक्ति पायी जाती है।
- अहिंसा – यह जैन धर्म का एक मूलभूत सिद्धांत है। वे कहते हैं कि इस धरती पर जितने भी जीव हैं कभी भी किसी के साथ हिंसा न करो कोई भी ऐसा कार्य न करो जिससे किसी जीव कष्ट हो। उनहोंने अपने अनुयायियों को शिक्षा दी है कि “अहिंसा ही परमो धर्म है।”
- अस्तेय – अस्तेय शब्द का अर्थ होता है “चोरी न करना” उन्होंने अपने शिष्यों को जीवन में कभी भी चोरी न करने की शिक्षा दी है। इस शिक्षा का वास्तविक अर्थ है चोरी न करने के साथ ही अपने मन में भी कभी कसी दूसरे की संपत्ति को चुराने की इच्छा न करना।
- ब्रह्मचर्य – महावीर जी कहते हैं की ब्रह्मचर्य श्रेष्ट तपस्या है। ब्रह्मचर्य की तपस्या मोक्ष की प्राप्ति में सहायक होती है।
सत्य, अपरिग्रह, अहिंसा, अस्तेय, और ब्रह्मचर्य यही पांच महावीर के मुख्य उपदेश थे। उनहोंने अपने प्रवचनों में इन्हीं पर सबसे अधिक जोर दिया।
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भगवान् महावीर के कितने शिष्य थे
जैन ग्रंथों के अनुसार ज्ञान प्राप्ति के बाद महावीर ने समाज में ज्ञान का प्रसार किया। उनके 11 मुख्य शिष्य थे जिन्हें गणधर भी कहा जाता है कहा जाता है। गणधर जैन धर्म की एक प्रख्यात उपाधि है। गणधर शब्द का प्रयोग मुख्य रूप से तीर्थंकरों के शिष्यों के लिए ही किया जाता है। जैन परंपरा में प्रत्येक तीर्थंकर के गणधर बताये गए हैं।
भगवान् महावीर के 11 गणधर अर्थात शिष्य बताये गए हैं। इन सभी गणधरों के मन में दीक्षा लेने से पूर्व कुछ न कुछ शंका थी। भगवान् महावीर ने उन सभी की शंकाओं का समाधान किया और वे सभी संतुष्ट हो कर महावीर के शिष्य ( गणधर ) बन गए।
महावीर स्वामी के 11 गणधरों के नाम
जैन परंपरा में 24 तीर्थंकरों का वर्णन मिलता है। तीर्थंकर उन्हें कहा गया है जो स्वयं के तप और कठिन साधना के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त कर लेते हैं उन्हें तीर्थंकर कहा गया है। जैन परंपरा में प्रत्येक तीर्थंकर के गणधर बताये गए हैं। भगवान् महावीर स्वामी के भी 11 गणधर थे। उनके नाम इस प्रकार हैं:
- वायुभूति गौतम
- प्रभास कौंडिन्य
- अग्निभूति गौतम
- मंडिकपुत्र वशिष्ठ मौर्य
- अकंपित गौतम
- इंद्रभूति गौतम
- मेतार्य कौंडिन्य तुंगिक
- भौमपुत्र कासव मौर्य
- व्यक्त भारद्वाज कोल्लक
- अचलभ्राता हिभाण
- सुधर्म अग्निवेश्यायन कोल्लक
महावीर स्वामी की प्रथम भिक्षुणी कौन थी
महावीर की प्रथम भिक्षुणी चंदनबाला थी। उनकी की प्रथम शिष्या चंदनबाला से सम्बंधित एक कथा है जिसमें बताया गया है कि उन्हें अपने पूर्व जन्मों का फल भोगना पड़ा था। वो एक मानव तस्कर के चंगुल में फंस गयी थी और उन्हें एक सेठ को बेच दिया गया किन्तु सेठ ने उनका पालन अपनी बेटी की तरह किया। सेठ की पत्नी इससे नाराज़ थी।
एक बार जब सेठ बहार गया तो उसने चन्दन बाला का सिर मुंडाकर बेड़ियों में बांधकर तहखाने में कैद कर दिया। सेठ जब वापिस लौटा तो उसकी पत्नी घर पर नहीं थी। उसे चंदनबाला भी नहीं मिली। जब सेठ ने ढूंढा तो उसे चन्दन बाला तहखाने में बंद मिली फिर उसने चंदनबाला को बेड़ियों से आज़ाद किया और तहखाने से बाहर निकाला।
महावीर जी इसी समय अपना उपवास ख़तम कर के लौट रहे थे उनकी इच्छा थी की सिर मुंडाकर अपने घर के द्वार पर खड़ी महिला ही उनके व्रत का पारण करवाए। जैसे ही वे चन्दन बाला के घर के सामने से गुजरे उन्हें चंदनबाला अपने घर के द्वार पर खड़ी दिखाई दी और उसके सिर का मुंडन हो रखा था।
उनकी इच्छा पूरी हो गयी। चंदनबाला ने उनके व्रत का पारण करवाया। स्वामी जी ने चन्दनबाला को बताया कि तुमने इस जीवन में जो भी कष्ट झेले हैं वह तुम्हारे पूर्व जन्म के कर्मों का फल है। उनके वचनों से प्रभावित हो कर धर्म के मार्ग पर चलने के लिए चन्दन बाला ने दीक्षा ली और स्वामी जी की प्रथम शिष्या बनी।
क्या महावीर आत्मा को मानते थे
वे मानव शरीर में आत्मा की उपस्थिति को मानते थे। उन्होंने आत्मा को ही ईश्वर बताया है और आत्मा को ही उपास्य माना है। उपास्य वो होता है जिसकी उपासना की जाती है। वे अपने शिष्यों को कहते थे कि सबसे पहले अपनी आत्मा को जानो। वे अपने उपदेशों में सदैव आत्मा की शुद्धि पर विशेष ध्यान देने की बात कहा करते थे। आत्मा के बारे में महावीर स्वामी ने कहा था:
जो सहस्सं सहस्साणं, संगामे दुज्जए जिए। एगं जिणेज्ज अप्पाणं, एस से परमो जाओ।। महावीर स्वामी कहते हैं कि दस लाख शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने से अच्छा है कि अपनी खुद की ही आत्मा पर विजय प्राप्त करें। यही विजय, श्रेष्ठ विजय है।
भगवान् महावीर को जैन क्यों कहा जाता है
जैन धर्म भारत की श्रमण परंपरा से निकला प्राचीन धर्म है। जिन अर्थात “जीतने वाला।” जिसने अपने तन, मन, वाणी को जीत लिया हो और सर्वोच्च ज्ञान प्राप्त कर लिया हो उसे “जिन” या जिनेन्द्र कहते हैं। भगवान् महावीर ने अपने तन, मन, वाणी को जीत लिया था इसीलिए उन्हें जैन कहा जाता है और उनका अनुसरण करने वाले जैनी कहलाये।
भगवान् महावीर से पहले जैन धर्म के कितने गुरु थे
जैन धर्म के गुरुओं को तीर्थंकर के नाम से जन जाता है। भगवान् महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर हैं। भगवान् महावीर से पहले जैन धर्म के 23 गुरु अर्थात तीर्थंकर थे।
- ऋषभदेव
- अजितनाथ
- सम्भवनाथ
- अभिनन्दन जी
- सुमतिनाथ जी
- पद्ममप्रभु जी
- सुपार्श्वनाथ जी
- चंदाप्रभु जी
- सुविधिनाथ जी
- शीतलनाथ जी
- श्रेयांसनाथ जी
- वासुपूज्य जी
- विमलनाथ जी
- अनंतनाथ जी
- धर्मनाथ जी
- शांतिनाथ जी
- कुंथुनाथ जी
- अरनाथ जी
- मल्लिनाथ जी
- मुनिसुव्रत जी
- नमिनाथ जी
- अरिष्टनेमि जी
- पार्श्वनाथ जी
- महावीर स्वामी जी
महावीर स्वामी के गुरु का नाम
महावीर स्वामी के गुरु का नाम उपलब्ध नहीं है क्यूंकि महावीर स्वामी के कोई गुरु नहीं थे। उनहोंने स्वयं ही 12 वर्ष का कठोर तप करके ज्ञान की प्राप्ति की थी। कठोर तप के पश्चात ज्ञान की प्राप्ति, उन्हें ऋजुपालिका नदी के तट पर एक साल्वा वृक्ष के नीचे हुई थी।
महावीर स्वामी को महावीर क्यों कहा जाता है
स्वामी जी का जन्म राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के यहाँ हुआ था। जन्म के पश्चात उनका नाम वर्धमान रखा गया था। समय बीतने के साथ उनके जीवन में ऐसे अनेक प्रसंग आए जब उनहोंने निडर और क्षमाशील होने का परिचय दिया। वर्धमान क्षमाशील और सहनशील होने के साथ ही अहिंसक और निडर भी थे इसी कारण उन्हें महावीर कहा जाने लगा।
बचपन में उनके निडर होने से सम्बंधित एक कथा इस प्रकार है कि एक बार उनहोंने एक बेकाबू हाथी को बिना किसी की सहायता के अकेले ही शांत कर दिया था। इसी तरह बचपन में एक बार खेलते समय उनहोंने एक सर्प को अपने हाथों से पकड़कर दूर फेंक दिया था।
इसी प्रकार सांसारिक जीवन से संन्यास लेने के बाद उनके साधना काल से जुड़ा एक वृत्तांत मिलता है जिसे हमें उनके अकल्पनीय सहसनशील होने का पता चलता है। एक बार की बात है, महावीर ध्यानमग्न थे उसी समय एक ग्वाला वहां पंहुचा। वह उनसे अपनी गायों की निगरानी के लिए बोल कर अपने किसी काम के लिए वहां से चला गया।
जब वह ग्वाला वापिस आया तो उसने देखा कि उसकी गायें वहां नहीं थीं। क्रोध में आकर उसने स्वामी से पूछा कि उसकी गायें कहाँ हैं। किन्तु वे ध्यानमग्न थे उनहोंने कोई जवाब नहीं दिया। इससे वह ग्वाला बहुत अधिक क्रोधित हो गया और उसने उनके दोनों कानों में कीलें ठोंक दीं। बहुत अधिक पीड़ा होने के बावजूद भगवान् महावीर ध्यानमग्न रहे उनहोंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।
अपने इन्हीं गुणों के कारण वे “भगवान् महावीर स्वामी” कहलाए।
भगवान् महावीर किसका अवतार हैं
जैन धर्म के में तीर्थंकरों का अनुसरण किया जाता है। जैन धर्म में अवतारवाद का कोई स्थान नहीं है। जैन धर्म के अनुसार, भगवान् महावीर किसी का अवतार नहीं हैं, वे एक सिद्ध पुरुष थे और उन्हें अपने तप और साधना के बल पर ही सर्वोच्च ज्ञान मिला और मोक्ष की प्राप्ति हुई। वे जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे और जैन अनुयायी उनका अनुसरण करते हैं।
महावीर स्वामी की मृत्यु कब और कहां हुई
महावीर स्वामी की मृत्यु 527 ई० पू०, 72 वर्ष की आयु में बिहार राज्य के पावानगर ( राजगीर ) में कार्तिक पक्ष की कृष्ण अमावस्या को हुई। वास्तव में यह उनकी की मृत्यु नहीं थी उनहोंने इस तिथि को निर्वाण ( मोक्ष ) प्राप्त किया था। पावापुरी के क्षेत्र में एक जल मंदिर स्थित है उसके बारे में कहा जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ पर स्वामी जी ने मोक्ष प्राप्त किया था।
महावीर स्वामी का अंतिम उपदेश क्या था
भगवान् महावीर स्वामी ने कुशीनगर के फाजिलनगर के पास पावानगर में अपने जीवन का अंतिम उपदेश दिया। उनका अंतिम उपदेश था “जियो और जीने दो।”उनहोंने सदैव लोगों को सत्य, अहिंसा, शान्ति और प्रेम का सन्देश दिया। उनका सन्देश था कि आप अहिंसा का पालन करते हुए प्रेमपूर्वक अपना जीवन जियो और इस धरती के दूसरे जीवों को भी अपना जीवन जीने दो।
गौतम बुद्ध और महावीर मे क्या अंतर है
- भगवान् महावीर का जन्म 599 ई० पू० में वैशाली राज्य के कुंडग्राम में हुआ था।
- इनका जन्म इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय परिवार में हुआ था।
- जैन शास्त्र “जिनवाणी” के अनुसार महावीर जी का कभी विवाह नहीं हुआ। वे बाल ब्रह्मचारी थे।
- भगवान् महावीर स्वामी ने 30 वर्ष की आयु में अपने बड़े भाई से आज्ञा लेकर ग्रह त्याग किया और संन्यास धारण कर लिया।
- महावीर स्वमी जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे।
- महावीर स्वामी के 11 शिष्य थे जिन्हें गणधर कहा जाता है।
- महावीर की शिक्षा थी सत्य, अहिंसा, ब्रह्मचर्य, अस्तेय और अपरिग्रह।
- महावीर ने 527 ई० पू० को 72 वर्ष की आयु में बिहार राज्य के पावानगर ( राजगीर ) में कार्तिक पक्ष की कृष्ण अमावस्या को मोक्ष प्राप्त किया।
- गौतम बुद्ध का जन्म 563 ई० पू० को नेपाल के लुम्बिनी में हुआ था।
- गौतम बुद्ध का जन्म शाक्य वंश के क्षत्रिय परिवार में हुआ था।
- ग्रह त्याग करने से पूर्व गौतम बुद्ध का विवाह राजकुमारी यशोधरा से हुआ था।
- गौतम बुद्ध ने 29 वर्ष की आयु में ग्रह त्याग किया।
- गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म की स्थापना की।
- गौतम बुद्ध ने दुनिया को पंचशील की शिक्षा दी हिंसा न करना, नशा न करना, चोरी न करना, झूठ न बोलना, व्याभिचार न करना।
- गौतम बुद्ध की मृत्यु 483 ई० पू० में वैशाख माह की पूर्णिमा को 80 वर्ष की आयु में कुशीनगर में हुई। बौद्ध धर्म में इसे महापरिनिर्वाण कहा जाता है। गौतम बुद्ध की मृत्यु पर बौद्ध धर्म के जानकार और इतिहासकार एकमत नहीं हैं।
FAQ – Frequently Asked Question
Q - महावीर स्वामी कौन से वंश के थे ? A - महावीर स्वामी इक्ष्वाकु वंश के थे।
Q - महावीर स्वामी का असली नाम क्या था ?
A - महावीर स्वामी का असली नाम वर्धमान था। यह नाम उनके माता पिता ने रखा था।
Q - ज्ञान प्राप्ति से पहले महावीर का क्या नाम था ? A - ज्ञान प्राप्ति से पहले भगवान् महावीर का नाम वर्धमान था।
Q - भगवान् महावीर का प्रथम उपदेश क्या था ? A - भगवान् महावीर स्वामी के प्रथम उपदेश को ’बिरशासन उदय’ कहा गया है।
Q - भगवान् महावीर ने किस भाषा में उपदेश दिया था ? A - भगवान् महावीर ने अपने उपदेश प्राकृत भाषा में दिए हैं। इसके साथ ही वे अर्धमगधी और पाली भाषा का भी उपयोग किया करते थे।
Q - महावीर स्वामी ने कितने सिद्धांत दिए ? A - महावीर स्वामी ने इस दुनिया को पांच सिद्धांत दिए। इन्हें पंचशील सिद्धांत कहा जाता है। सत्य, अहिंसा, अपरिग्रह, अस्तेय और ब्रह्मचर्य।
Q - भगवान् महावीर का प्रथम शिष्य कौन था ? A - भगवान् महावीर के प्रथम शिष्य जमाली थे।
Q - महावीर के अनुयायियों को क्या कहा जाता है ? A - महावीर के अनुयायियों को जैनी कहा जाता है।
Q - भगवान् महावीर का केवली काल {कुमार काल} कितने वर्ष का था ? A - भगवान् महावीर का केवली काल 30 वर्ष का था।
Q - क्या महावीर स्वामी क्षत्रिय हैं ? A - हाँ ! महावीर स्वामी क्षत्रिय है उनका जन्म इक्ष्वाकु वंश के क्षत्रिय परिवार में हुआ था।
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