नारद स्मृति में हिन्दू विवाह के नियम

नारद स्मृति प्राचीन हिन्दू धर्मशास्त्रों में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, जो नारद ऋषि द्वारा रचित माना जाता है। नारद स्मृति में हिन्दू विवाह के नियम भी बताये गए हैं। विवाह नियमों के साथ ही इसमें इसमें धर्म, आचार, न्याय, और सामाजिक नियमों का एक विस्तृत वर्णन मिलता है।

नारद स्मृति में हिन्दू विवाह के नियम

नारद स्मृति में हिन्दू विवाह के नियम

नारद स्मृति हिन्दू विवाह से संबंधित कई नियमों और सिद्धांतों का उल्लेख करती है। यह ग्रंथ विवाह को सामाजिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण आधार मानता है। नारद स्मृति में वर्णित हिन्दू विवाह के प्रमुख नियम इस प्रकार हैं:

नारद स्मृति में हिन्दू विवाह के नियम सम्बन्धी जानकारी विस्तारपूर्वक बताई गयी है। इसमें वर के लिए नियम हैं कि वह श्रेष्ठ कुल का होने के साथ ही शास्त्रज्ञ और धर्मपरायण हो। वह शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ हो इसके साथ ही वर आचारयुक्त और सदाचारी भी होना चाहिए। नारद स्मृति विवाह में कन्यादान को भी अनिवार्य नियम बताती है।

नारद स्मृति में अंतरजातीय विवाह के बारे में भी बताया गया है। अंतरजातीय विवाह में अनुलोम विवाह को सीमित रूप से स्वीकार किया गया है, लेकिन प्रतिलोम विवाह को अधिकतर निंदनीय माना गया है।

पुनर्विवाह: नारद स्मृति में कुछ स्थानों पर स्त्री के पुनर्विवाह का भी उल्लेख मिलता है, विशेषरूप से इन परिस्थितियों में, यदि पति का निधन गया हो, पति लापता हो अथवा पति संन्यासी बन गया हो। परंतु इस नियम को समाज के विभिन्न वर्गों में भिन्न-भिन्न रूप से माना गया है।

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नारद स्मृति में विवाह के प्रकार

साथ ही नारद स्मृति में हिन्दू विवाह के नियम बताते हुए आठ प्रकार के विवाह का वर्णन किया गया है।

1. ब्राह्म विवाह

2. दैव विवाह

3. आर्ष विवाह

4. प्राजापत्य विवाह

5. गांधर्व विवाह

6. असुर विवाह

7. राक्षस विवाह

8. पैशाच विवाह

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1. ब्राह्म विवाह:

ब्रह्म विवाह का इन आठ प्रकार के विवाहों में सबसे उच्च स्थान है। इस विवाह में लड़के अथवा लड़की के माता-पिता अपने पुत्र अथवा पुत्री के लिए एक उपयक्त जीवन साथी की तलाश करते हैं। कन्या के माता पिता यह सुनिश्चित करते हैं कि उनकी पुत्री के भावी पति ने जीवन के पहले चरण में ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए शिक्षा पूरी करी हो। वह विद्वान हो, वेदों का ज्ञाता हो

2. दैव विवाह

दैव विवाह विवाह का वह रूप है जहाँ एक पूर्णतः सक्षम व्यक्ति अपनी पूर्ण रूप से सकुशल पुत्री का हाथ एक पुजारी के हाथ में देता है। इस विवाह को दूसरा सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। ऐसा इसीलिए है क्यूंकि इस विवाह को स्वयं देवताओं के योग्य माना जाता है।

3. आर्ष विवाह

आर्ष विवाह में वर कन्या के पिता को एक जोड़ी गाय या अन्य प्रतीकात्मक उपहार देता है — यह कोई दान या मूल्य नहीं होता, बल्कि कृतज्ञता प्रकट करने का माध्यम होता है। वर कन्या के पिता को गौ आदि देकर विवाह की अनुमति मांगता है। यह लेन-देन धर्मसम्मत और गृहस्थाश्रम की स्थापनार्थ होता है, न कि व्यापारिक रूप में।

4. प्राजापत्य विवाह

प्रजापति के विधान के अनुसार इस विवाह में एक लड़की का पिता दूल्हे के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करते हुए, उसे विवाह के लिए सौंपता है, और उसे निम्नलिखित शब्दों से संबोधित करता है:

“धर्मं चर, गृहे स्था” अर्थात – “तुम मेरी कन्या को इस उद्देश्य से ग्रहण करो कि वह तुम्हारे साथ मिलकर धर्म का आचरण करे और गृहस्थ धर्म का पालन करे।”

5. गांधर्व विवाह

गांधर्व विवाह प्रेम में स्वीकृति द्वारा हुआ विवाह है। इस विवाह में प्राथमिक उद्देश्य संभोग होता है। इसमें वर अथवा वधु किसी के भी परिवार के सदस्यों से कोई परामर्श नहीं किया जाता और न ही कोई अनुष्ठान समारोह किया जाता है।

इस विवाह को को सामान्य तौर पे अधार्मिक माना जाता है। किन्तु वर्तमान समय में Dating Culture के कारण यह आम हो गया है।

6. असुर विवाह

असुर विवाह विवाह का एक गैर धार्मिक रूप है। इस विवाह में वर कन्या के पिता या परिजनों को धन, संपत्ति, आभूषण आदि देकर कन्या को खरीदता है, मानो वह कोई वस्तु हो। यह विवाह एक प्रकार का “विवाह का व्यापारिक लेन-देन” बन जाता है। जो धर्म और नैतिकता के आदर्शों के विरुद्ध समझा गया है।

7. राक्षस विवाह

राक्षस विवाह एक ऐसा विवाह है जिसमें विवाह के लिए कन्या और उसके परिवार के सहमत न होने पर विवाह हेतु उसका बलपूर्वक अपहरण कर लिया जाता है। इसे अधर्मजन्य और निंदनीय विवाह की श्रेणी में रखा गया है।

इस विवाह की मनुस्मृति में निंदा की गयी है, वर्तमान समय में भी समाज में कानून द्वारा दंडित किया जाता है।

8. पैशाच विवाह

जब कोई पुरुष, नारी की सहमति के बिना, उसकी अचेत अवस्था में, सोई हुई या नशे की अवस्था में शारीरिक संबंध बनाकर विवाह कर लेता है, तो उसे पैशाच विवाह कहा गया है।

पैशाच विवाह हिन्दू धर्मशास्त्रों में वर्णित आठ विवाह प्रकारों में सबसे अधम और निंदनीय विवाह माना गया है। यह विवाह प्रकार न केवल अधर्मिक है, बल्कि इसे पापपूर्ण और अपराध की श्रेणी में भी रखा गया है।

नारद स्मृति में ब्राह्म, दैव, प्राजापत्य व आर्ष विवाहों को श्रेष्ठ और धर्मसंगत माना गया है, जबकि असुर, राक्षस और पैशाच को अधर्म और निंदनीय विवाह माना गया है

नारद स्मृति में पति और पत्नी के कर्तव्य

नारद स्मृति में पति और पत्नी के कर्तव्य: नारद स्मृति पति और पत्नी दोनों के लिए कुछ कर्तव्यों को रेखांकित करती है। नारद स्मृति में पत्नी का एक मुख्य कर्तव्य पति की सेवा करना बताया गया है।

पत्नी को पति की सेवा को धर्म मानकर पालन करना चाहिए। हालाँकि, इसमें यह भी उल्लेख है कि यदि पति जुआरी या मद्यपान करने वाला है, तो पत्नी के लिए उसकी सेवा न करने में कोई दोष नहीं है।

पति के कर्तव्यों में पत्नी का भरण-पोषण, रक्षा और सम्मान का ध्यान रखना शामिल है। पति को पत्नी के साथ धर्मानुसार व्यवहार करना चाहिए। नारद स्मृति यह भी इंगित करती है कि पति को विवाह के समय पत्नी के आर्थिक अधिकारों की अवहेलना न करने की प्रतिज्ञा करनी चाहिए।

(Disclaimer: The material on hindumystery website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

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