शीतला अष्टमी व्रत कैसे करें

शीतला अष्टमी का व्रत मुख्य रूप से माता शीतला देवी को समर्पित होता है। होली के बाद वाली अष्टमी पर होने वाला शीतला अष्टमी व्रत कैसे करें आज हम आपको विस्तारपूर्वक बताएँगे। इस दिन बासी भोजन खाने और ताजा भोजन न पकाने की परंपरा होती है। इसे बासोड़ा पूजन, बासौदा पूजन भी कहते हैं।

शीतला अष्टमी व्रत कैसे करें

शीतला अष्टमी व्रत करने के लिए सबसे पहले हम आवश्यक पूजा सामग्री को एकत्रित करेंगे:

  • इस पूजा में शीतला माँ को बासी भोजन का भोग लगाया जाता है और इस व्रत पूजन के दिन घर में चूल्हा जलाने की मनाही है इसीलिए पूजन तिथि से एक दिन पहले ही माँ को भोग लगाने के लिए शुद्धता से सात्विक भोजन तैयार कर लें।
  • माँ के भोग के लिए भीगी हुई चने की दाल या चने और दही, पूरी और मालपुआ। इसके साथ ही अपनी स्थानीय परंपरा अनुसार बिना प्याज, लहसुन के तैयार किया गया भोग माँ को लगाएं।
  • पूजा की चौकी, चौकी पर बिछाने के लिए लाल कपड़ा।
  • शीतला माँ की तस्वीर।
  • एक लौटा जल लेकर उसमे कुछ मात्रा में गंगाजल मिला लें साथ ही थोड़ा मक्खन या कच्चा दूध मिला लें।
  • हल्दी, कलावा, फूल।
  • बिना नमक वाले आटे का दीपक या मिट्टी का दीपक
  • बड़कुले ( बड़कुल्ला, बडकुल्या, बल्ले ) की माला।

शीतला अष्टमी व्रत करते समय सबसे पहले व्रत से एक दिन पहले ही माँ को भोग लगाने के लिए नहा-धोकर सात्विक भोजन तैयार कर लें। व्रत वाले दिन सुबह उठकर नहा – धोकर शौचादि से निवृत हो जाएँ।

घर पर पूजा करने के लिए घर के पूजा स्थल पर एक चौकी बिछाएंगे। फिर उसके ऊपर लाल कपडा बिछाकर माता शीतला की तस्वीर स्थापित करेंगे।

अब माँ की तस्वीर और चौकी के ऊपर स्नानभाव से लौटे में पड़ा गंगाजल फूल के माध्यम से छिड़केंगे। इसके बाद माँ को हल्दी का तिलक लगाएंगे साथ ही माँ के वाहन को भी तिलक लगाना है।

तिलक लगाने के बाद माता शीतला को वस्त्र स्वरुप में कलावा चढ़ाना है, इस मंत्र का जाप करते हुए “ॐ वस्त्रम समर्पयामि” इसके बाद माँ को फूल अर्पित करने हैं, इस मंत्र का जाप करते हुए “ॐ पुष्पम समर्पयामि”

पुष्प अर्पण के बाद माँ के सामने रुई की बाती डालकर आटे या मिट्टी का दीपक रखें लेकिन इस दीपक को जलाना नहीं है क्यूंकि इस व्रत में माता शीतला को गर्म चीजें चढाने की मनाही है। इसी वजह से पूजन में अगरबत्ती और धूपबत्ती भी नहीं जलाई जाती। मान्यता है कि गर्म वस्तुएं माता शीतला को कष्ट देती हैं।

दीपक अर्पित करने के बाद माँ को बड़कुले की माला चढ़ाएं। माला को चौकी के बगल में रखकर उसकी भी विधिवत्त पूजा करनी है।

स्नानभाव के साथ माला पर जल छिड़क कर हल्दी का तिलक लगाएं और माला पर भी फूल चढ़ाएं। इसके बाद माँ को एक दिन पहले तैयार किया गया भोग चढ़ाएं।

माँ को भोग चढ़ाने के बाद अपनी क्षमता अनुसार पैसे भी चढ़ाएं। अब माँ से प्रार्थना करें कि हे माँ यदि आपकी पूजा में हमसे कोई गलती हो गयी हो तो हमें क्षमा करें।

इसके बाद हाथ में फूल लेकर व्रत कथा सुननी है।

व्रत कथा सुनने के बाद हाथ में लिया गया फूल माता की चौकी पर रख दें। इस प्रकार माता शीतला की पजा पूर्ण हुई। माँ को चढ़ाया गया भोग आप दान कर सकते है।

कुछ जगहों पर स्थानीय मान्यता के अनुसार माँ को चढ़ाया गया भोग जरूरतमंद व्यक्तियों को दान किया जाता है ब्राह्मणों को नहीं।

यह व्रत विशेष रूप से संक्रामक रोगों, जैसे- चेचक, फोड़े-फुंसी आदि से बचाव के लिए किया जाता है। इस व्रत को करने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है और रोगों से रक्षा होती है।

(Disclaimer: The material on hindumystery.com website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

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