varaha dwadashi ki katha

varaha dwadashi के दिन वराह देव ने माता पृथ्वी को हिरण्याक्ष नामक दैत्य से बचाया था। इस दिन भगवान् वराह की पूजा करने और varaha dwadashi ki katha सुनने से भक्तों को समस्त पापों से मुक्ति और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

varaha dwadashi ki katha

वराह अवतार भगवान् विष्णु का दूसरा अवतार है। वराह द्वादशी माघ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाई जाती है। जो भक्त इस दिन भगवान् वराह की पूजा करते है, उन्हें अच्छे स्वास्थ्य के साथ शांति और समृद्धि की प्राप्ति होती है।

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varaha dwadashi ki katha

varaha dwadashi ki katha का सार यह है की हिरण्याक्ष नाम के राक्षस ने पृथ्वी को समुद्र के रसातल में छुपा दिया था उस समय भगवान् विष्णु वराह अवतार के रूप में प्रकट हुए। भगवान् विष्णु के वराह अवतार ने पृथ्वी को समुद्र के रसातल से निकाला और हिरण्याक्ष का वध कर दिया। इस प्रकार भगवान् वराह ने पृथ्वी को हिरण्याक्ष राक्षस के प्रकोप से बचाया।

यह बात सतयुग के समय की है। उस समय में दिति और ऋषि कश्यप के दो पुत्र हुए—हिरण्यकशिपु और हिरण्याक्ष। ये दोनों अत्यंत बलशाली और स्वभाव से देवताओं और धर्म के विरोधी थे।

हिरण्याक्ष ने कठोर तपस्या करके ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई भी देवता, मानव या पशु मार नहीं सकेगा। वरदान पाकर वह अहंकारी हो गया और उसने पृथ्वी पर अत्याचार करना शुरू कर दिया।

हिरण्याक्ष एक दिन अपनी शक्ति को अत्यंत बढ़ाने के लिए विचार मंथन कर रहा था। तब उसने सोचा क्यों न मैं पृथ्वी को ही समुद्र के रसातल में छुपा दूँ। क्यूंकि पृथ्वी पर होने वाले यज्ञ ही देवताओं की शक्ति का स्रोत होते हैं।

अगर मैं पृथ्वी को समुद्र के रसातल में छुपा दूंगा तो न ही मनुष्य रहेंगे और न ही उनके यज्ञ पूजन से देवताओं को बल प्राप्त होगा। फिर मैं देवताओं पर विजय प्राप्त कर लूंगा।

हिरण्याक्ष जब पृथ्वी को उसके स्थान से हटा कर समुद्र के रसातल में ले गया तब सभी देवी देवता और स्वयं ब्रहम्मा जी भगवान् विष्णु का चिंतन करने लगे। सभी देवी देवताओं की पुकार सुनके भगवान् विष्णु ब्रहम्मा जी की नासिका से वराह देव के रूप में प्रकट हुए।

वहां उपस्थित सभी देवी देवता वराह देव की स्तुति करने लगे। उनके शरीर के बाल चन्द्रमा के समान चमक रहे थे। उनकी आँखों से करोड़ों सूर्य के समान तेज निकल रहा था। वराह देव की गर्जना तीनों लोक में गूंजने लगी।

तभी वराह देव समुद्र के जल को चीरते हुए तेजी से रसातल में गए और पृथ्वी को अपने दांतों पर उठा कर समुद्र के रसातल से निकाल लाये।

यह सब देखकर हिरण्याक्ष अत्यंत क्रोधित हुआ और उसने वराह देव के ऊपर आक्रमण कर दिया। वराह देव और हिरण्याक्ष एक दूसरे से युद्ध करने लगे। तभी वराह देव ने हिरण्याक्ष पर ऐसा प्रहार किया कि उसे खून की उलटी होने लगी और उसके प्राण निकल गए।

आकाश में सभी देवता प्रकट हुए और भगवान् की जय जय कार करने लगे। इस प्रकार भगवान् विष्णु ने वराह देव का अवतार लेकर हिरण्याक्ष के प्रकोप से समस्त पृथ्वी की रक्षा की। अधर्म का नाश हुआ और धरती पर पुनः धर्म की स्थापना हुई।

वराह द्वादशी व्रत का महत्त्व

  • यह व्रत करने से पापों से मुक्ति मिलती है।

  • सुख-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति होती है।

  • वराह द्वादशी के दिन व्रत-पूजन करने से भगवान विष्णु की कृपा से परिवार में शांति बनी रहती है।

  • विशेष रूप से वे लोग, जो जीवन में कष्ट और परेशानियों से जूझ रहे हैं, इस व्रत को करने से लाभ प्राप्त करते हैं।

  • वराह द्वादशी का व्रत करने से मृत्यु के बाद मोक्ष प्राप्ति का आशीर्वाद मिलता है।

  • भगवान विष्णु की कृपा से हर संकट टल जाता है।

वराह द्वादशी भगवान विष्णु के धरती रक्षा के महत्त्व को दर्शाती है। भगवान् विष्णु इस सृष्टि के पालनकर्ता हैं। इस सृष्टि के सभी प्राणियों के पिता के रूप में वे उनका ध्यान रखते हैं। इस दिन व्रत करने और पूजा करने से जीवन में स्थिरता आती है और भक्तों को विष्णु लोक में स्थान मिलता है।

जो भक्त श्रद्धा और भक्ति भाव से इस व्रत को करते हैं, उन्हें सभी दुखों से छुटकारा मिलता है।

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