Akshay Navami 2024: अक्षय नवमी की कहानी

इस वर्ष अक्षय नवमी कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाएगी। अक्षय नवमी की कहानी जानने के बाद बाद आप इसके महत्व को अच्छी तरह समझेंगे। यह पर्व प्रत्येक वर्ष दिवाली के बाद पड़ने वाली नवमी तिथि को मनाया जाता है अक्षय नवमी को आंवला नवमी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा की जाती है।

अक्षय नवमी की कहानी

अक्षय नवमी की कहानी

भारतवर्ष में अलग-अलग पर्वों की कथा कई बार अलग-अलग स्थानों पर वहां की स्थानीय लोककथाओं के अनुसार भिन्न हो सकती हैं। आज हम आपको आंवला नवमी पर 2 सबसे अधिक प्रचलित कहानियां बताएँगे।

अक्षय नवमी की कहानी -1

शास्त्रों के अनुसार सतयुग के दौरान एक बार की बात है, माता लक्ष्मी एक बार पृथ्वी पर निवास करने आयीं। पृथ्वी पर निवास के दौरान माता लक्ष्मी भगवान् शिव और भगवान् विष्णु की एक साथ पूजा करना चाहती थीं। किन्तु शिव जी और भगवान् विष्णु की एक साथ पूजा करना संभव नहीं था।

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माँ लक्ष्मी ने बहुत आत्मचिंतन किया। तब माँ लक्ष्मी को स्मरण हुआ कि तुलसी भगवान् विष्णु को और बैल भगवन शिव को अत्यंत प्रिय है। तुलसी और बैल के प्रतीकात्मक गुण आँवले के वृक्ष में पाए जाते हैं और आँवले का वृक्ष भगवान् शिव और भगवान् विष्णु दोनों का प्रतीक माना जाता है।

इसके बाद माँ लक्ष्मी ने आंवले के वृक्ष को शिव जी और विष्णु जी का प्रतीक मानकर उसकी पूजा करी। शिव जी और विष्णु जी दोनों ही माँ लक्ष्मी की पूजा से बहुत प्रसन्न हुए और माँ लक्ष्मी के सामने प्रकट हो गए। लक्ष्मी जी ने उसी स्थान पर आँवले के वृक्ष के नीचे भोजन बनाया और भगवान् शिव और भगवान् विष्णु को भोजन कराया। इस प्रकार माँ लक्ष्मी की शिव जी और विष्णु जी की एक साथ पूजा करने की मनोकामना पूर्ण हुई।

यह थी अक्षय नवमी की कहानी और माँ ने जिस दिन भगवान् शिव और विष्णु की पूजा करी थी वह दिन था कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि, उसी दिन से इस तिथि को अक्षय नवमी या आँवला नवमी के नाम से जाना जाता है। इस दिन महिलायें व्रत रखकर आंवले के वृक्ष की पूजा करती हैं।

अक्षय नवमी की कहानी -2

अक्षय नवमी की दूसरी कहानी इस प्रकार है :

एक नगर में एक सेठ-सेठानी रहते थे। वो अपने 4 बेटों और बहुओं के साथ रहते थे। सेठ अपने नगर के सबसे धनवान व्यक्ति थे। उनके पास धन संपत्ति इतनी अधिक थी कि उनहोंने अपनी धन संपत्ति का हिसाब-किताब रखने के लिए कर्मचारी नियुक्त कर रखे थे। उनके पास धन इतना अधिक था कि कर्मचारी धन का हिसाब तराजू से तौल कर किया करते थे।

सेठानी एक दयालु स्त्री थी। उसने अपने जीवन में एक नियम बना रखा था। वह प्रतिदिन एक सोने का आँवला दान किया करती थी। सोने का आँवला दान करने के पश्चात ही सेठानी भोजन ग्रहण किया करती थी। वहीं दूसरी तरफ सेठ अपने कारोबार में लगे रहते थे। इस प्रकार वे दोनों अपने चार बेटों और बहुओं के साथ आनंद पूर्वक जीवन व्यतीत कर रहे थे।

समय इसी प्रकार सुखपूर्वक बीत रहा था। एक दिन आपस में बातचीत करते हुए उनकी बहुओं ने विचार किया कि अगर माता जी इसी प्रकार प्रतिदिन सोना दान करती रहीं धीरे-धीरे घर का सारा खजाना खाली हो जायेगा। चारों बहुओं ने आपस में विचार-विमर्श किया इसके बाद वे सभी अपनी सास के पास गयीं।

उनहोंने अपनी सास से कहा, माताजी आप रोज सोने के आँवले का दान करती आ रहीं हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन हमारे घर का खजाना भी खाली हो सकता है। आप ऐसा कीजिये कि आप रोज सोने के आंवले की जगह आप सामान्य आँवले के फल का दान करना शुरू कर दें। इससे आपका रोज आँवला दान करने का नियम भी चलता रहेगा और घर के खजाने पर भी कोई बुरा असर नहीं पड़ेगा। सेठानी ने अपनी बहुओं की बात मान ली और उसने प्रतिदिन सोने के आंवले की जगह सामान्य आँवले का दान करना शुरू कर दिया।

इसी प्रकार दिन गुजरने लगे, फिर उनकी बहुओं को अपनी सास का रोज आंवले के फल का दान करना खटकने लगा। बहुओं ने अपनी सास को खजाना में कमी होने का कारण बताते हुए आँवला फल का दान करने से भी मना किया। इस बात से सेठ और सेठानी दोनों को बहुत अधिक कष्ट पहुंचा। उनहोंने निश्चय किया कि वे अब अपने बच्चों के साथ नहीं रहेंगे और इस घर का त्याग कर देंगे।

उन दोनों ने उसी दिन घर का त्याग कर दिया और किसी से भी बिना कुछ कहे घर से चले गए। सेठानी ने उस दिन आँवले का दान नहीं किया था। इसीलिए उनहोंने भोजन भी नहीं किया था। वे दोनों ही भूखे-प्यासे चलते रहे। थक-हारकर वे दोनों एक जगह सो गए। भगवान् विष्णु ने उन दोनों को इस प्रकार कष्ट झेलते हुए देखकर भगवान् विष्णु ने निर्णय किया कि वे अपने इन भक्तों को अब कभी कष्ट नहीं होने देंगे।

भगवान् विष्णु ने उसी स्थान पर एक सोने के आंवले का वृक्ष ऊगा दिया। जब सेठ-सेठानी सोकर उठे उनहोंने देखा कि उन पास ही एक आंवले का वृक्ष लगा हुआ है और इसमें सामान्य आँवले की जगह सोने के आँवले लगे हुए हैं। इसे देखकर दोनों बहुत ही प्रसन्न हुए। सेठानी ने पहले आँवले का दान किया उसके बाद दोनों ने भोजन किया।

सेठ-सेठानी उसी स्थान पर घर बना कर रहने लगे। धीरे-धीरे वो दोनो फिर से धनी हो गए। वहीं दूसरी तरफ उनके बेटों का बुरा वक़्त शुरू हो गया। व्यापर में घटा होना शुरू हो गया। वे सभी आपस में लड़ने-झगड़ने लगे। ये नियति का ही खेल था की कुछ ही दिनों में उनका दिवालिया निकल गया और खाने के भी मोहताज हो गए।

अपना भोजन जुटाने के लिए वे लोग काम ढूंढ़ने निकले। काम ढूंढते हुए वो लोग उसी जगह पहुंचे जहाँ सेठ-सेठानी फिर धनी होकर अपना घर बना कर रह रहे थे। उन लोगों की हालत इतनी दयनीय हो गयी थी कि उनके पिता ने उनको नहीं पहचाना और काम पे रख लिया। वे लोग भी अपने माता-पिता को नहीं पहचान सके। वो सोच भी नहीं सकते थे की उनके माता पिता इतने धनी हो गए होंगे।

एक दिन बहु ने सेठानी के बालों की कंघी करते हुए उसकी पीठ पर एक तिल देखा और उसे अपनी सास की याद आ गयी। उसने सोचा कि हमने अपनी सास के दान धर्म के कार्य में रोक लगाई इसीलिए हमारी ये हालत हो गयी, यह सोचकर बहु रोने लगी। सेठानी ने उसे रोते देखकर उसके रोने का कारण पूछा। तो उसने बताया कि ऐसा ही तिल मेरी सास की पीठ पर भी था। वे रोज आँवला दान किया करती थीं हमने उन्हें ऐसा करने से रोका इसीलिए वे घर छोड़कर चले गए।

ये सुनते ही सेठानी ने अपनी बहु को पहचान लिया। उन सभी से मिलकर उनका हाल-चाल पूछा। सेठानी ने अपने बेटे बहुओं को बताया कि दान करने से कभी भी धन कम नहीं होता बल्कि भगवान् और बरकत देते हैं। बेटे-बहुओं को अपनी गलती का एहसास हो गया था उन्होंने अपने अपराध के लिए अपने माता पिता से क्षमा मांगी। सेठ-सेठानी और उनके बेटे-बहुएं फिर से साथ रहने लगे, सुखपूर्वक जीवन जीने लगे।

हे प्रभु, जिसप्रकार आपने सेठ-सेठानी का विश्वास टूटने नहीं दिया और उनके बच्चों को सद्बुद्धि दी। उसी प्रकार हम सब पर भी अपनी कृपा बनाये रखिये, हमें धन-धान्य से युक्त रखिये और अपने परिवार के साथ सुखपूर्वक रहने का आशीर्वाद दीजिये।

यह अक्षय नवमी की दूसरी कहानी थी। अक्षय नवमी या आँवला नवमी के व्रत में अक्षय नवमी की कहानी सुनने की भी परम्परा है। मान्यता है कि ऐसा करने से व्रत पूजन के फल की प्राप्ति होती है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।

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