
बछ बारस की कहानी गौ माता की: बछ बारस एक हिंदू व्रत है जो हर साल भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत संतान प्राप्ति और संतान की लंबी आयु के लिए किया जाता है। भारतवर्ष के कुछ स्थानों पर इसे बछ बारस का पर्व कहा जाता है वहीं भारत में दूसरे स्थानों पर इसे गोवत्स द्वादशी के नाम से जाना जाता है।
आज इस लेख में हम आपको बछ बारस की कथा के बारे में बताएँगे कि किस प्रकार साहूकार गोहत्या के पाप से भी बच गया और उसे उसका पोता भी उसे वापिस मिल गया।
बछ बारस की कहानी गौ माता की
हिन्दू धर्म के पौराणिक ग्रंथों में गाय को बहुत ही पवित्र माना जाता है। शास्त्रों में कहा गया है की गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है। इसीलिए सच्चे मन से किये गए गौ-पूजन से समस्त देवी-देवताओं का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत में माताएं अपनी संतान की लम्बी आयु की कामना करते हुए गाय और बछड़े की पूजा करती हैं।
बछ बारस की कहानी गौ माता की:
बारस की कहानी या गोवत्स द्वादशी कथा इस प्रकार है: प्राचीन समय की बात है एक गांव में एक साहूकार अपने सात पुत्रों के साथ रहता था। उसके सभी पुत्र विवाहित थे और उसके पोते भी उसी के साथ रहते थे।
साहूकार गाँव में एक समृद्ध और प्रतिष्ठित व्यक्ति था। इसीलिए उसने सम्पूर्ण गांव के हित के बारे में सोचते हुए गांव में एक तालाब बनवाया। लेकिन काफी लम्बा समय ( 12 वर्ष ) बीत जाने पर भी वो तालाब पानी से नहीं भरा। साहूकार को कुछ समझ नहीं आया कि इसका क्या कारण हो सकता है।
साहूकार तालाब भरने के सभी उपाय करने के बाद हारकर अंत में विद्वान पंडितों के पास गया और उनसे पूछा कि हे महाराज पिछले 12 वर्षों से मैंने सभी प्रयास करके देखे किंतु यह तालाब नहीं भर रहा इसका कोई उपाय बताएं। तब उनहोंने इसका उपाय बताया कि तुम्हें तुम्हारे सबसे बड़े बेटे या बड़े पोते की बलि देनी होगी तभी यह तालाब भरेगा।
यह जानने के बाद साहूकार घर आया। क्यूंकि एक माँ अपने पुत्र की बलि के लिए कभी भी सहमत नहीं होगी। इसीलिए साहूकार ने यह काम पूरा करने के लिए अपनी सबसे बड़ी बहु को उसके मायके भेज दिया, और बहु के जाने के बाद उसके बेटे यानि कि अपने बड़े पोते की बलि दे दी।
ऐसा करते ही अचानक से चारों और बादल घिर आये और बहुत तेज वर्षा होने लगी। कुछ ही समय बाद वह तालाब भर गया। इसके कुछ समय बाद बछ बारस का समय आया। क्यूंकि तालाब अब जल से भर गया था इसीलिए साहूकार का परिवार तालाब की पूजा करने जाने लगा।
पूजा के लिए जाते समय साहूकार घर की दासी से बोल गया कि हमारे आने से पहले गेऊंला धानुला ( चना, मोठ ) पका लेना। साहूकार चना और मोठ के अनाज को पकाने के लिए बोल कर गया था लेकिन उनकी दासी साहूकार की बात समझ नहीं पायी।
संयोगवश साहूकार की गाय के बछड़े का नाम भी गेऊंला धानुला था। दासी ने समझा की उसके सेठ ने इसे ही पकाने के लिए कहा है और उसने गाय के बच्चे को मारकर उसे ही पका दिया।
वहीं दूसरी तरफ तालाब की पूजा करने के साहूकार के बड़े बेटे की पत्नी भी अपने मायके से आ गयी। जब तालाब पूजन का कार्य सपन्न हुआ तो उसके बाद साहूकार की बड़ी बहु अपने बच्चों से लाड़-प्यार करने लगी क्यूंकि वह उनसे काफी दिन बाद मिल रही थी। लेकिन उसे अपना बड़ा बेटा दिखाई नहीं दिया तो उसने अपने सास-ससुर से अपने बड़े बेटे के बारे में पूछा।
तभी अचानक तालाब से उसका बड़ा बेटा निकल आया और अपनी माँ से कहने लगा माँ मुझे भी तो प्यार करो। वह उस वक़्त तालाब की मिटटी से सना हुआ था अपने बेटे को ऐसी हालत में देखने के बाद बहु अपनी सास की तरफ प्रश्न भरी निगाहों से देखने लगी। इस पर सास ने अपनी बहु को उसके बेटे की बलि देने वाली सारी बात बता दी। साथ ही यह भी कहा की बछ बारस माँ की कृपा से हमारा काम भी बन गया और हमारा बच्चा भी हमें वापिस मिल गया।
पूजा करने बाद जब सभी लोग घर वापिस लौटे तो उनहोंने देखा कि गाय का बछड़ा घर पर नहीं था। फिर साहूकार ने घर की दासी से पूछा कि बछड़ा कहाँ गया तो उसने कहा, अपने उसे पकाने के लिए कहा था इसीलिए मैंने उसे पका दिया।
यह सुनते ही साहूकार को आघात पहुंचा उसने कहा कि अभी-अभी तो हम एक पाप से मुक्त हुए थे। अब तुमने ये दूसरा महापाप भी हमारे सर चढ़ा दिया। दासी के पकाये बछड़े को उनहोंने मिटटी में दबा दिया। इसके बाद शाम के समय जब गाय घर वापिस लौटी तो उसे उसका बछड़ा नहीं मिला। वह व्याकुल होकर अपने बछड़े को इधर उधर ढूंढ़ने लगी।
तभी वह वहां पहुंची जहाँ उसके बछड़े को दबाया गया था। गाय वहां की मिटटी खोदने लगी तभी मिटटी में से गाय का बछड़ा निकल आया अपनी माँ के साथ खेलने लगा। फिर साहूकार को पता चला कि गाय का बछड़ा जिन्दा है वह वहां उसे देखने आया उसने देखा बछड़ा अपनी माँ का दूध पीने में व्यस्त था।
साहूकार ने गाँव में सभी लोगों को अपने साथ बीती घटना के बारे में बताया और कहा कि आप सभी को बछ बारस का व्रत करना चाहिए। माँ से निवेदन करना चाहिए कि हे माँ जैसे अपने साहूकार की बहु पर कृपा करी वैसे ही हम पर भी कृपा करना।
भारतवर्ष में कुछ स्थानों पर यह कथा इस प्रकार भी कही जाती है कि गेहूंला और मूंगला नाम के दो बछड़े थे जिन्हे दासी ने काटकर फ़ेंक दिया था। इसी वजह से कुछ स्थानों पर इस दिन गेहूं, मूंग और चाक़ू का प्रयोग वर्जित होता है।
यह थी बछ बारस की कहानी गौ माता की, उम्मीद करते कि आप बारस की कथा के बारे में जान गए होंगे। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि बछ बारस के व्रत को भारत में कुछ अन्य स्थानों पर गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है।
(Disclaimer: The material on this website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)