हिन्दू परंपरा में प्राचीन काल से ही ऐसे कई नियमों और उपकरणों आदि का प्रयोग किया जाता रहा है जो मानव जीवन को दिन प्रतिदिन बेहतर बनाने में सहायक होते हैं। किन्तु आज के समय में हम अपनी उस समृद्ध परंपरा को भूलते जा रहे हैं। आज हम आपके लिए अपनी उस समृद्ध परम्परा से एक ऐसे ही उपकरण की जानकारी निकाल कर लाएं हैं जिसको आज के समय में लगभग भुला दिया गया है। आज हम आपको योग डंडा ( योग दंड ) के बारे में बताएँगे। जिसके प्रयोग के बारे में जानने के बाद आप चौंक जायेंगे।
योग डंडा क्या है इसका प्रयोग कैसे किया जाता है इस लेख में आप विस्तार से जानेंगे।
योग डंडा क्या है
क्या आप जानते हैं योग डंडा क्या है । योग डंडा ( योग दंड ) “T” आकर की लकड़ी की छड़ी जैसा एक प्राचीन उपकरण है, जो मानव नथुने ( Nostril ) में सांस के प्रवाह को बदलने में सहायक होता है। इसका प्रयोग करके आप अपने शरीर की सूर्य नाड़ी और चंद्र को नियंत्रित कर सकते हैं इसका प्रयोग अक्सर ऋषि – मुनियों और साधु – संतों के द्वारा किया जाता है। किन्तु एक सामान्य जीवन जीने वाला आम नागरिक भी इसका प्रयोग अपने शरीर के लिए करके अपने जीवन को अधिक कुशलता से जी सकता है।
योग डंडा को ध्यान की छड़ी और योग दंड के नाम से भी जाना जाता है।
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इस योग डंडा के माध्यम से आप अपने शरीर की सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी को अपने नियंत्रण में रख सकते हैं और इन नाड़ियों को अपने नियंत्रण में करके आप किस प्रकार अपने जीवन को बैलेंस करने में सफल हो जायेंगे और किस प्रकार आपको अनेक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होंगे, इस लेख में आप विस्तार से जानेंगे।
योग डंडा ( योग दंड ) आपके जीवन को बैलेंस ( balance ) करने में बहुत ही सहायक होता है। यदि आप अपने जीवन को बैलेंस करने में सफल हो जाएं तो आप अपने जीवन में आने वाली किसी भी तरह की रुकावट से आसानी से निकलने में सक्षम हो जायेंगे ।
आमतौर पर अपने यही सुना और देखा है कि ऋषि मुनि योग दंड का इस्तेमाल माला जाप के लिए करते हैं । लेकिन इसके अलावा भी योग दंड का कई और कार्यों में उपयोग किया जाता है।
यदि आप अपनी साँसों पर ध्यान दें तो आप पाएंगे कि आपके एक Nostril, नासिका छिद्र (नाक में मौजूद छेद) से ज्यादा हवा अंदर जा रही है और बाहर जा रही है। ऐसा या आपकी left nose बायीं नाक से हो रहा होगा या फिर आपकी right nose दायीं नाक से हो रहा होगा।
दायीं नाक (right nostril) को सूर्य नाड़ी कहा जाता है और बायीं नाक (left nostril) चंद्र नाड़ी कहा जाता है। हमारी जिस भी नाड़ी से ज्यादा सांस अंदर-बाहर हो रही होती है, उस समय हमारी वही नाड़ी सक्रीय होती है। ऐसा अगर हमारी दायीं नाक (right nostril) से हो रहा है तो हमारी सूर्य नाड़ी सक्रीय है और अगर, ऐसा हमारी बायीं नाक (left nostril) से हो रहा तो हमारी चंद्र नाड़ी सक्रीय है। हमारे शरीर में सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी की सक्रियता हमेशा बदलती रहती है।
सूर्य नाड़ी को चंद्र नाड़ी में बदलना
हम अपनी जिस भी nostril नासिका छिद्र से सांस ज्यादा सांस ले रहे होते हैं हमारी वही नाड़ी सक्रिय होती है । यदि हमारी सूर्य नाड़ी सक्रिय है और हम अपनी चंद्र नाड़ी को सक्रिय करना चाहते हैं तो योग दंड का इस्तेमाल करके हम यह कार्य कर सकते हैं।
यदि आपकी सूर्य नाड़ी सक्रीय है और आप अपनी चंद्र नाड़ी सक्रीय करना चाहते हैं करना चाहते हैं तो इसके लिये आप योग दंड को अपनी सूर्य नाड़ी की तरफ यानि कि दाहिनी तरफ अपनी बगल (underarm) के नीचे दबा लें। इससे आप अपनी बगल के नीचे थोड़ा दबाव महसूस करेंगे। इस स्थिति में कुछ देर बैठे रहने से धीरे -धीरे आपकी सूर्य नाड़ी काम करना शुरू कर देगी।
आपकी जो भी नाड़ी काम कर रही हो उस समय इस योग दंड को दूसरी नाड़ी की तरफ वाले हाथ की बगल के नीचे रखने से आपकी दूसरी नाड़ी सक्रीय हो जाएगी।
सुषुम्ना नाड़ी
सुषुम्ना नाड़ी वो नाड़ी होती है जब हमारे दोनों स्वर एक समान कार्य कर रहे होते हैं। अर्थात जब हमारी सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी दोनों समान रूप से खुली होती हैं और दोनों ही नाड़ियों से हमारी सांस समान मात्रा में अंदर और बाहर जा रही होती है।
जब भी हमें ध्यान करना हो या हम पूजा करने जा रहे हों तो उस समय हमें अपनी सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय कर लेना चाहिए। ऐसा करने से हमें ध्यान में अधिक लाभ प्राप्त होगा। हम एक मानसिक शान्ति के साथ अपनी पूजा और ध्यान कर सकेंगे।
सुषुम्ना नाड़ी को सक्रिय करने के लिए दो योग दंड लेकर उन्हें अपने दोनों हाथों की बगल के नीचे दबा लेना है और 5 मिनट तक बैठे रहना है। इससे आपकी दोनों नाड़ियां समान रूप से सक्रिय हो जाएँगी। यह अभ्यास लगातार करते रहने से यह 5 मिनट का समय घट कर 2 – 3 मिनट हो जायेगा।
ध्यान करते समय हम इन दोनों योग दंड को अपनी दोनों बगलों के नीचे रखकर भी ध्यान के लिए बैठ सकते हैं।
सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी का हमारे शरीर पर प्रभाव
सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी इन दोनों ही नाड़ियों के हमारे शरीर पर अलग-अलग प्रभाव हैं। हमारे रोज़ाना के जीवन में ऐसे कई मौके आते हैं जब हमारी सूर्य नाड़ी या फिर चंद्र नाड़ी का सक्रीय होना हमारे शरीर के लिए लाभप्रद होता है।
सूर्य नाड़ी
हमारी सूर्य नाड़ी (right nostril) का गुण, उसकी तासीर गर्म होती है। जो हमारे शरीर को ऊर्जा देती है। जिस समय हम भोजन कर रहे होते हैं, उस समय हमारे शरीर को जठराग्नि को जागृत करके भोजन को पचाने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है। इसीलिए उस समय हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करने वाली सूर्य नाड़ी सक्रीय रहनी चाहिए।
मल विसर्जन – सुबह के समय मल विसर्जन के लिए टॉयलेट जाते समय भी हमारी सूर्य नाड़ी सक्रीय रहनी चाहिए।
परिश्रम करते समय, व्यायाम करते समय और स्नान करते समय भी हमारे शरीर को सूर्य नाड़ी के सक्रीय रहने की आवश्यकता होती है। अधिक ठंड होने पर या फिर बरसात में बाहर जाते समय यदि हमारा दाहिना स्वर (सूर्य नाड़ी) जागृत है तो ठंड से हमारा बचाव होगा।
चंद्र नाड़ी
हमारी चंद्र नाड़ी (left nostril) की तासीर ठंडी होती है। यदि हमारी चंद्र नाड़ी सक्रीय है तो यह हमारे शरीर को ठंडा करेगी, हमारे शरीर को शीतलता प्रदान करेगी।
गर्मी के मौसम में यदि हमें पित्त सम्बन्धी रोगों की समस्या होती है तो उस समय हमारी चंद्र नाड़ी की सक्रियता से हमें पित्त रोगों में लाभ होगा। घबराहट होने की समस्या में, मूत्र में जलन होने की समस्या में, बुखार होने की समस्या में, लू लगने पर यदि हम अपनी इस नाड़ी की सक्रिय करते हैं तो इससे हमे अवशय लाभ प्राप्त होगा।
किसी भी तरह का पेय जैसे पानी, कोल्ड्रिंक, चाय आदि पीते समय चंद्र नाड़ी सक्रिय रहनी चाहिए।
इस प्रकार हम अपनी सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी को इस ब्रह्माण्ड और बाहरी वातावरण के साथ तालमेल में ला सकते हैं। यदि हमारी सूर्य नाड़ी और चंद्र नाड़ी इस ब्रह्माण्ड और बाहरी वातावरण के साथ तालमेल में आ जाए तो हम अपने जीवन में किसी भी तरह की परेशानी नहीं झेलेंगे । हर तरह की रुकावटों में से बहुत ही आसानी से निकलते हुए हम अपना पूरा जीवन जीयेंगे ।
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