क्या विधवा से शादी करना ठीक है

विधवा स्त्री के जीवन से जुड़े बहुत से सवाल समाज में उठते रहते हैं जैसे: क्या विधवा से शादी करना ठीक है, क्या विधवा स्त्री हवन कर सकती है ऐसे कई अन्य प्रश्न हैं जिनका उत्तर हम आपको अपने इस लेख में देंगे। विधवा का जीवन कई चुनौतियों से भरा हो सकता है। आज के युग में इन चुनौतियों से निपटने और एक पूर्ण जीवन जीने के कई रास्ते उपलब्ध हैं।

एक विधवा स्त्री का जीवन सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यक्तिगत परिस्थितियों पर निर्भर करता है। पुराने समय में विधवा स्त्रियों के साथ प्रायः कठोर और असमानता पूर्ण व्यवहार किया जाता था। लेकिन समय के साथ समाज में बदलाव आ रहे हैं, और अब विधवा महिलाओं के अधिकार और सम्मान को लेकर समाज में जागरूकता बढ़ी है।

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क्या विधवा से शादी करना ठीक है

हिन्दू धर्म में विधवा विवाह के लिए धार्मिक नजरिये को लेकर लम्बे समय से असमंजस की स्थिति रही है। हालाँकि हिन्दू धर्म में विधवा विवाह किये जा रहे हैं लेकिन क्या विधवा विवाह करना उचित है, समाज का एक वर्ग धार्मिक आधार पर इस प्रश्न का उत्तर जानना चाहता है।

हमारे वेदों में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि विधवा से विवाह करना उचित है। विधवा स्त्री अपने दिवंगत पति की याद में अपना समस्त जीवन बिता दे शास्त्रों में ऐसा अनिवार्य नहीं है। शास्त्रों के अनुसार विधवा स्त्री को पूरा अधिकार है कि वह अपने जीवन में आगे बढ़ कर पुनः अपनी जीवन यात्रा प्रारम्भ करे। इन बातों से हमें यह स्पष्ट हो जाता है कि विधवा से विवाह करना सही है।

पुरातन काल में पाराशर ऋषि ने भी बताया है कि यदि विवाह के उपरान्त शीघ्र ही स्त्री के संतानवती हुए बिना पति की मृत्यु हो जाती है तो ऐसी स्त्री का पुनः विवाह कर देना चाहिए । साथ ही शाश्त्रो में यह भी बताया गया है कि ऐसी विधवा स्त्री को कुमारी ही समझना चाहिए।

यदि कोई भी दंपत्ति अपनी बेटी का पुनर्विवाह करता है तो इसके लिए यह नियम बताया गया है कि बेटी का कभी दुबारा कन्यादान नहीं किया जाता। जब बेटी का जब दुबारा विवाह किया जाता है तो उसमे फिर से कन्यादान नहीं करना चाहिए।

आजकल की सामाजिक परिस्थितियों में भी देखा जाए तो विधवा से शादी करना एक सराहनीय फैसला है क्यूंकि एक विधवा स्त्री का अकेले जीवन बिताना बहुत दुःख भरा हो जायेगा। एक विधवा स्त्री के माता – पिता या सास – ससुर आखिर कितने समय तक उसके साथ रह पाएंगे और उनके बाद स्त्री के मायके में उसके भाई – भाभी या फिर उसके ससुराल में उसके दिवंगत पति के भाई – भाभी उसके साथ सही व्यवहार करेंगे या नहीं यह एक बड़ा प्रश्न है।

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क्या विधवा स्त्री हवन कर सकती है

हवन और पूजा का उद्देश्य किसी भी व्यक्ति के आध्यात्मिक उन्नति के लिए होता है, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, विधवा हो या विवाहित। किन्तु किसी भी स्त्री के विधवा हो जाने पर ये प्रश्न अवश्य ही उठता है कि इस विधवा स्त्री द्वारा क्या हवन किया जा सकता है।

शास्त्रों के अनुसार विवाह के बाद किसी भी महिला को अकेले हवन करने का अधिकार नहीं है। इसी प्रकार किसी पुरुष को भी अकेले हवन करने का अधिकार नहीं है। किसी भी हवन, अनुष्ठान में पति – पत्नी के जोड़े का बैठना अनिवार्य है। क्यूंकि विधवा स्त्री के पति का देहांत हो चूका है और वह अकेली है इसीलिए विधवा स्त्री हवन नहीं कर सकती है।

इसी प्रकार शास्त्रों में विधुर पुरुष को भी हवन, अनुष्ठान करने का अधिकार नहीं है। माँ सीता के अनुपलब्ध होने पर भगवान् राम ने माँ सीता की स्वर्ण प्रतिमा बनाकर हवन , अनुष्ठान पूर्ण किया था। क्यूंकि विवाह के उपरान्त बिना पत्नी के कोई भी हवन – अनुष्ठान सम्पूर्ण नहीं होता।

क्या विधवा स्त्री तुलसी की पूजा कर सकती है

हवन – अनुष्ठान और पूजा – पाठ ये दोनों अलग चीजें हैं। एक विधवा महिला को रोज़ किये जाने वाले पूजा पाठ की कोई मनाही नहीं है क्यूंकि तुलसी पूजा भी रोज किये जाने वाले पूजा – पाठ की श्रेणी में आती है। इसीलिए विधवा स्त्री तुलसी की पूजा भी कर सकती है।

इसी प्रकार एक विधुर पुरुष के को भी रोज़ाना किये जाने वाले पूजा पाठ की कोई मनाही नहीं है।

हिन्दू धर्म में किसी के भी साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता है। सभी को एक सामान दृष्टि से देखा जाता है। किसी मनुष्य की जाती अथवा उसके लिंग के कारण कभी उससे कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। सभी नियम महिला पुरुष पर सामान रूप से समान रूप से तय होते हैं।

(Disclaimer: The material on this website provides information about Hinduism, its traditions and customs. It is for general knowledge and educational purposes only.)

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