इस सृष्टि में जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु होनी ही है, यह अटल है। लेकिन प्रश्न यह है, क्या मृत्यु के बाद संबंध समाप्त हो जाते हैं।

जिन माता-पिता ने आपको जन्म दिया, जिन भाई – बहनों के साथ आप खेल कूद के बड़े हुए है, आपके दोस्त, आपकी पत्नी, आपके बच्चे। क्या ये सभी रिश्ते आपकी मृत्यु के बाद ख़त्म हो जायेंगे। आज इस लेख में हम इस विषय पर चर्चा करेंगे और आपको बताएँगे कि हिन्दू शास्त्रों और धर्मग्रंथों में इस बारे में क्या लिखा है।
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क्या मृत्यु के बाद संबंध समाप्त हो जाते हैं
हिन्दू धर्म के अनुसार आत्मा न ही जन्म लेती है और न ही आत्मा की मृत्यु होती है। आत्मा केवल शरीर बदलती है। इसीलिए हिन्दु धर्म में आत्मा को अमर बताया गया है और पुनर्जन्म की व्याख्या की गयी है। इन बातों को जानने के बाद लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है कि यदि आत्मा अमर है उसकी मृत्यु नहीं होती वह केवल शरीर बदलती है तो क्या मृत्यु के बाद संबंध समाप्त हो जाते हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जब आत्मा शरीर से निकल जाती है तो उसे अपने शरीर से जुडी कोई भी बात याद नहीं रहती है। आत्मा अपना परिवार अपने रिश्ते सभी को भूल जाती है। उसे अपने माता-पिता बीवी-बच्चे कुछ भी याद नहीं रहता। मृत्यु के बाद इस जन्म के सभी रिश्ते नाते और सम्बन्ध समाप्त हो जाते हैं।
मृत्यु के बाद कोई उसके काम नहीं आता उसके काम आता है सिर्फ भगवान् का नाम और उसके कर्म। उसके कर्म ही उसके साथ जाते हैं।मनुष्य के कर्मों का फल उसे मिल के ही रहेगा। मृत्यु के बाद आत्मा अपने कर्मों के हिसाब से स्वर्ग या नरक में चली जाती है अपितु उसका पुनर्जन्म हो जाता है।
हिन्दू धर्म में किसी की मृत्यु के बाद पीछे छूट गए परिवारजनों के लिए कुछ नियम तय किये गए हैं जैसे श्राद्ध कर्म इत्यादि इनसे आत्मा को आगे की यात्रा में सहयोग मिलता है।
पौराणिक कथा:
इस विषय से सम्बंधित एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार गर्मियों के मौसम में नारदमुनि जी अपने शिष्य के साथ मृत्यु लोक का भ्रमण कर रहे थे।
विश्राम हेतु वे एक स्थान पर रुक गए इसी दौरान एक व्यक्ति वहां से काफी सारी बकरियां लेकर गुज़रने लगा तभी उनमें से एक बकरा एक दुकान में घुस गया और वहां पड़ा अनाज खाने लगा, दुकान का नाम था संघाल चंद सेठ की दुकान। दुकान के मालिक का जैसे ही उस बकरे पर ध्यान पड़ा उसने बकरे को पकड़ कर दूकान से बाहर निकाला और उसे 2-3 घूंसे जड़ दिए। बकरा दर्द से चिल्लाने लगा।
नारद मुनि ने ध्यान लगा कर कुछ देखा फिर वे हंसने लगे जब उनके शिष्य ने उनसे उनके हंसने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि यह दुकान जिस संघाल चंद सेठ की है वो सेठ स्वयं बकरे की योनि में जन्म लेकर आया है यह दुकानदार इसी सेठ का पुत्र है और इसी सेठ के पुत्र ने इसे मारकर भगा दिया।
सेठ ने मरने के बाद बकरे की योनी में जन्म लिया और इस दुकान से अपने सम्बन्ध के कारण ही दुकान में कुछ खाने के लिए घुसा था लेकिन इसी के पूर्व जन्म के पुत्र ने इसे मारकर भगा दिया।
जिस बेटे के लिए संघाल चंद ने इतनी महनत करी और अपना ये कारोबार छोड़ कर गया आज उसका वही बेटा उसे इस दुकान से मार कर भगा रहा है।
नारद जी कहते हैं इसीलिए मनुष्य के मोह पर मुझे हंसी आती है। उसे इस मोह को त्याग कर भगवान् के सुमिरन में अपने जीवन का उपयोग करना चाहिए।
क्या मृत्यु के बाद अपने परिजनों से बात हो सकती है
हिन्दू धर्म यह मानता है कि आत्मा अमर है और मृत्यु केवल शरीर का त्याग है। मृत्यु के पश्चात आत्मा अपने शरीर और सभी रिश्ते – नातों को छोड़कर आगे बढ़ जाती है।
आज के समय में समाज में कुछ लोग यह भी जानना चाहते हैं कि, क्या मृत्यु के बाद अपने परिजनों या अपने परिवार वालों से बात हो सकती है।
जैसे ही आपके प्रियजन अपने शरीर को छोड़ते हैं तो वो अपने मन, बुद्धि और भावनाओं की समझ से भी दूर हो जाते हैं और मृत्यु के बाद आत्मा अपना परिवार अपने रिश्ते सभी को भूल जाती है। उसे अपने माता-पिता बीवी-बच्चे कुछ भी याद नहीं रहता। इसीलिए मृत्यु के बाद अपने प्रियजनों से बात नहीं हो सकती।
हालाँकि गरुड़ पुराण में बताया गया है कि, मृत्यु के बाद आत्मा 13 दिनों तक अपने परिजनों के पास ही रहती है। इस दौरान आत्मा इतनी कमज़ोर रहती है कि वह आगे की यात्रा करने में असमर्थ रहती है। श्राद्ध, तर्पण जैसे कर्मकांड इसीलिए किये जाते हैं ताकि जीव आसानी से अपने मार्ग पर आगे बढ़ जाये।
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