
शरद पूर्णिमा का त्योहार आश्विन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। शरद पूर्णिमा के दिन खीर का महत्व धार्मिक, सांस्कृतिक और औषधीय तीनों तरह से होता है। शरद पूर्णिमा के दिन, लोग चंद्रमा की पूजा करने के साथ ही देवी लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा करते हैं।
इस दिन, लोग खीर बनाकर चांद की रोशनी में रखते हैं और अगले दिन उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं। खीर को देवी लक्ष्मी का प्रसाद माना जाता है और इस दिन इसे खाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं।
यह त्योहार शरद ऋतु ( सर्दियों का मौसम ) के आगमन का प्रतीक है। शरद पूर्णिमा को कोजागरी पूर्णिमा, रास पूर्णिमा और कुमार पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
शरद पूर्णिमा के दिन खीर का महत्व
शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाने और खाने की परंपरा बहुत पुरानी है। इस दिन बनाई गयी खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाया जाता है। इससे माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं। शरद पूर्णिमा के दिन खीर का महत्व इसीलिए भी है क्यूंकि माना जाता है कि इस दिन प्रसाद के रूप में खायी जाने वाली खीर में कई औषधीय गुण भी होते है
शरद पूर्णिमा के दिन खीर का महत्व :
- धार्मिक महत्व: हिंदू धर्म में, खीर को देवी लक्ष्मी का प्रसाद माना जाता है। इस दिन खीर खाने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और भक्तों को धन-धान्य में समृद्धि और सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं।
- औषधीय महत्व: आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा के दिन चांद की रोशनी में रखी गई खीर अमृत के समान होती है। चाँद की रौशनी में रखी गयी इस खीर में कई औषधीय गुण होते हैं जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होते हैं। आयुर्वेद के अनुसार कहा जाता है कि इस दिन चाँद की किरणें अमृत के सामान होती है और चन्द्रमा की रौशनी में रखने से खीर में अमृत के समान गुण आ जाते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा से सम्बंधित हर वस्तु जागृत होती है। ज्योतिष शास्त्र में दूध को चाँद से जुड़ी वस्तु बताया गया है। ऐसे में जब दूध से बनी खीर पर चन्द्रमा की रौशनी पड़ती है तो उसमे बहुत से सकारात्मक बदलाव होते हैं और उसमें औषधीय गुण आ जाते हैं।
शरद पूर्णिमा के दिन प्रसाद रूप में खायी जाने वाली खीर के औषधीय प्रभाव शरद पूर्णिमा का वैज्ञानिक महत्व भी सिद्ध करते हैं।
- सांस्कृतिक महत्व: शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाने और खाने की परंपरा भारत में बहुत पुरानी है। यह परंपरा पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही है।
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शरद पूर्णिमा की पूजा
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा के साथ ही देवी लक्ष्मी और भगवान् विष्णु की पूजा करी जाती है।
- शरद पूर्णिमा के दिन सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर शौचादि से निवृत होकर स्नान कर लें
- स्नान करने के लिए जो पानी है उसमे गंगाजल मिला लें।
- स्नान करने के बाद सूर्यदेव को अर्घ्य देते हुए व्रत का संकल्प करें।
- अपने घर के मंदिर या पूजा स्थल पर धुप और दीप जलाकर भगवान् को नमन करें और भगवान् का आशीर्वाद लें।
- यदि संभव हो तो इस दिन निराहार रहें। नहीं तो फलाहार कर सकते हैं या फिर दिन में एक बार भोजन किन्तु भोजन सात्विक होना चाहिए।
- शाम के समय खीर बनाये। यदि दूध गाय का उपलब्ध हो तो और भी अच्छा है।
- इसके बाद पूजा स्थल पर माँ लक्ष्मी और भगवान् विष्णु की प्रतिमा स्थापित करें। पूजा करने के लिए आसन ग्रहण करें।
- सबसे पहले जल आचमन करें।
- इसके बाद भगवान् के सामने धूप और दीप जलाएं।
- माँ लक्ष्मी और भगवान् विष्णु को फूलों का हार चढ़ाएं।
- इसके बाद प्रसाद के लिए तैयार खीर का भगवान् को भोग लगाएं। भगवान् से निवेदन करें कि “हे भगवान् हमारे द्वारा अर्पित वस्तुएं ग्रहण करें।”
- शरद पूर्णिमा व्रत कथा पढ़ें। भगवान् की आरती करें।
- पूजा समाप्त करने के बाद चंद्रोदय होने पर चन्द्रमा की भी पूजा करें।
- खीर को केले के पत्ते पर रखकर चन्द्रमा के समक्ष भोग के रूप में अर्पित कर दें।
- चन्द्रमा के समक्ष पुरे परिवार के निरोगी होने की कामना करें।
- अगली सुबह इस खीर को प्रसाद के रूप में पुरे परिवार की दें। इस खीर के प्रसाद को खा कर शरद पूर्णिमा के व्रत का समापन करें।
खीर के प्रसाद को चाँद की रौशनी में रखने के लिए साफ़ छलनी का प्रयोग करें। या फिर किसी जालीदार पात्र का इस्तेमाल इस्तेमाल करें जो चाँद की रौशनी और खीर के बीच रुकावट न बने।
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