वेदों में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है कि विधवाएं अशुद्ध या अशुभ होती हैं। आज हम आपको बतायंगे कि विधवाओं के बारे में वेद क्या कहते हैं। वेदों में विधवाओं को समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा माना गया है और उन्हें समानता, स्वतंत्रता, और अधिकार दिए गए हैं।

विधवाओं के बारे में वेद क्या कहते हैं
वेदों में विधवाओं के विषय में एक सकारात्मक दृष्टिकोण मिलता है। वेदों में विधवाओं को समाज का एक सम्मानित हिस्सा कहा गया है और उन्हें आत्मनिर्भरता, पुनर्विवाह, और समाज में स्वतंत्र रूप से जीवन जीने का अधिकार दिया गया है। वेदों में कहा गया है कि विधवाएं समाज में आदर और गरिमा के साथ जीवन जीएं और साथ ही वेदों में यह भी कहा गया है कि पति की मृत्यु के बाद उसकी विधवा पत्नी को उसकी याद में अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करना अनिवार्य नहीं है। उस स्त्री को को पूर्ण अधिकार है कि वह अपने जीवन में आगे बढ़कर किसी अन्य पुरुष से विवाह करके अपना जीवन सफल बनाये।
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ऋग्वेद और अथर्ववेद में ऐसे अनेक संदर्भ हैं जहाँ विधवाओं के अधिकारों की बात की गई है। जिसकी चर्चा आगे की गयी है:
अथर्ववेद में विधवाओं के पुनर्विवाह को उचित माना गया है। इसमें स्पष्ट कहा गया है कि विधवाएं अपने जीवनसाथी को चुनने के लिए स्वतंत्र हैं।
ऋग्वेद में यह स्पष्ट किया गया है कि महिलाएं, चाहे विवाहित हों या विधवा, ज्ञान प्राप्त कर सकती हैं और समाज में योगदान दे सकती हैं।
ऋग्वेद में हमें बताया गया है कि एक विधवा स्त्री को अपने पति के बारे में सोचना छोड़ देना चाहिए और जो व्यक्ति उससे विवाह करना चाहता है, उसे स्वीकार कर लेना चाहिए और अपना जीवन जीना चाहिए।
ऋग्वेद में न केवल एक विधवा स्त्री के जीवित रहने बल्कि साथ ही संपत्ति पर भी उसके अधिकार को मान्यता दी गयी है। अपितु उसके मृत पति के भाई के साथ उसके विवाह को भी स्वीकृति दी गयी है साथ ही परिवार में पूर्ण गरिमा और सम्मान के साथ रहने की अनुमति दी गयी है।
ऋग्वेद में स्पष्ट रूप से विधवा-विवाह की अनुमति दी गई है। वेदों में यह भी कहा गया है कि विधवा किसी भी व्यक्ति से विवाह कर सकती है, ऐसा जरूरी नहीं है कि वह व्यक्ति महिला के मृतक पति का भाई या कोई रिश्तेदार ही हो। वह कोई अन्य भी हो सकता है यदि वह महिला का जीवनसाथी बनने के योग्य हो।
ऋग्वेद या फिर किसी अन्य वेद अथवा शास्त्र में विधवा स्त्री को उसके पति के मृत शरीर के साथ जलाने की प्रथा का कहीं भी वर्णन नहीं किया गया है।
वेदों में स्पष्ट रूप से विधवा विवाह को मंजूरी दी गयी है। वेदों के अनुसार ऐसी विधवा महिलाओं को घर या समाज में किसी भी तरह की निंदा या अलगाव का सामना नहीं करना पड़ता। उन महिलाओं का अपने मृत पतियों से विरासत में मिली संपत्ति पर अधिकार था। ऋषियों ने महिला और उसके नए पति को संतान और खुशी का आशीर्वाद दिया है।
वेदों में “नियोग” के बारे में भी बताया गया। जिसमें विधवाओं को मातृत्व सुख प्राप्त करने का अधिकार दिया गया।
मनुस्मृति में भी कहा गया है कि विधवा को अपने छोटे देवर से पुत्र पैदा करने की अनुमति थी।
पराशर स्मृति में कहा गया है कि यदि किसी महिला के पति का देहांत हो जाता है या फिर वो सन्यासी बन जाता है। पति के नपुंसक होने, धर्म से गिरने या पति के भाग जाने जैसे मामलों में कोई भी महिला पुनः विवाह कर सकती है।
आमतौर पर पश्चिमी विद्वानों द्वारा यह यह माना जाता है कि भारत में विधवा महिलाओं को उनके पति के मृत शरीर के साथ जला दिया जाता था। जबकि ऋग्वेद या किसी अन्य धर्मग्रन्थ में विधवा महिलाओं को उनके पतियों के मृत शरीर के साथ जलाने की प्रथा का कहीं उल्लेख नहीं मिलता है।
हिन्दुओं को अपने धर्म को पढ़ना चाहिए और जानना चाहिए और समाज में कुछ लोगों द्वारा हिन्दू धर्म के प्रति फैलाये जा रहे दुष्प्रचार का खंडन करना चाहिए। हमें वेदों की वास्तविक शिक्षाओं को अपनाकर सभी के साथ समान व्यवहार करना चाहिए।